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मंगलाचरण का विवरण
'णमो अरिहंताणं' का विवेचन इस शास्त्र के प्रथम मंगलाचरण के रूप में जो नमस्कार मंत्र दिया गया है, उस पर कुछ विस्तार से विवेचन करना उपयोगी प्रतीत होता है। यह मंत्र सर्वसाधारण जैन जनता में अत्यन्त प्रसिद्ध है। शायद ही कोई जैन ऐसा होगा जो दिन-रात में एक बार भी इस मंत्र का जाप न करता हो। जैन ६ गर्म के अनुयायी सभी सम्प्रदाय समान भाव से इस पवित्र मंत्र का श्रद्धा-भक्ति के साथ स्मरण करते हैं। अतएव स्पष्टतापूर्वक इस मंत्र का भाव समझाना आवश्यक है।
'णमो अरिहंताणं' यह एक वाक्य है। इस वाक्य में दो पद हैं (1) 'णमो' और (2) 'अरिहंताणं'। शास्त्रकारों ने पांच प्रकार के शब्द बतलाये हैं
(1) नाम शब्द (2) निपात शब्द (3) आख्यात शब्द (4) उपसर्ग शब्द (5) मिश्र शब्द । इन पांचों प्रकार के शब्दों के उदाहरण इस प्रकार हैं
(1) नाम शब्द-यथा-घोड़ा, हाथी आदि । (2) निपात शब्द-खल मिल आदि। (3) आख्यात शब्द-भवति, घावति आदि क्रिया शब्द । (4) उपसर्ग शब्द-प्र, परा अभि आदि । (5) मिश्र शब्द-सम्राट, संयत आदि।
इन पांच प्रकार के शब्दों में से 'नमः' (णमो) निपात शब्द है। अर्थात् इस शब्द में न कोई विभक्ति लगी है, न प्रत्यय ही, यह किसी धातु से निष्पन्न नहीं हुआ है। यह स्वतः सिद्ध रूप है।
__ 'नमः' पद का अर्थ है-द्रव्य एवं भाव से संकोच करना। यहां नमः का यही अर्थ -द्रव्य-भाव से संकोच करना लिया गया है। अर्थात् द्रव्य से हाथ, पैर और मस्तक रूप पांचों अंगों को संकोच कर नमस्कार करता हूं और भाव से, आत्मा को अप्रशस्त परिणति से पृथक् करके अरिहंत भगवान् के गुणों में लीन करता हूं।
यह नमः शब्द का अर्थ हुआ। अब 'अरिहंताणं' पद का अर्थ क्या है, यह देखना चाहिए। भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट करने वाले 'अरिहंत' शब्द के अनेक रूपान्तर होते हैं। यथा-अर्हन्त, अरहोन्तर, अरथान्त, अरहन्त, अरहयत्, अरिहन्त, अरुहन्त आदि। इन रूपान्तरों में अर्थ का जो भेद है वह आगे यथास्थान प्रकट किया जायगा।
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १६
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