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________________ नहीं होती। सच्चा मंगल वह है जिसमें अमंगल को लेशमात्र भी अवकाश न हो और जिस मंगल के पश्चात् अमंगल प्रकट न होता हो और साथ ही जिससे सब का समान रूप से कल्याण-साधन हो सकता हो, जिसके निमित्त से किसी को हानि या दुःख न पहुंचे। ऐसा सच्चा मंगल भाव मंगल ही है। अतएव यहां शास्त्र की आदि में भावमंगल ही उपादेय है। भावमंगल के स्तुति मंगल, नमस्कार मंगल आदि अनेक प्रकार हैं। ज्ञान मंगल, दर्शन मंगल, चरित्र मंगल और तम मंगल भी भाव मंगल के ही भेद हैं। इन अनेक विध भाव मंगलों में से ग्रहां शास्त्र के आरंभ में पंच परमेष्ठी भगवान् को नमस्कार रूप भावमंगल किया गया है। क्योंकि भाव मंगल के अन्तर्गत आये हुए दूसरे मंगलों की अपेक्षा पंच परमेष्ठी-नमस्कार मंगल में दो विशेषताएं हैं-प्रथम यह है कि यह नमस्कार मंगल लोक में उत्तम है और दूसरी यह कि देवराज इन्द्र भी इसका शरण लेता है। एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलं ।। यह शास्त्र वाक्य है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु व पंच परमेष्ठी को किया हआ नमस्कार समस्त पापों का नाश करने वाला है। पाप ही विघ्न या विघ्न के कारण हैं। पाप का नाश होने पर विघ्न नहीं रहते। यह नमस्कार मंगल अन्य सब मंगलों से प्रथम अर्थात् श्रेष्ठ है। समस्त शास्त्रों को नमस्कार मंत्र जप कर पढ़ा जाये तो विजों का नाश हो जाता है। इसी कारण शास्त्र के आरंभ में नमस्कार मंत्र द्वारा मंगलाचरण किया गया है। _ नमस्कार मंत्र (णमोकार मंत्र) का वर्णन किस शास्त्र में आया है? यह मंत्र मूलतः कहां से आया है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि णमोकार मंत्र सभी शास्त्रों में ओत प्रोत है। सभी शास्त्रों में किसी न किसी रूप में इस मंत्र का अस्तित्व विद्यमान है। यह चौदह पूर्वो का सार माना जाता है। भले अक्षरशः यह मंत्र किसी शास्त्र में न पाया जाये, मगर प्रत्येक शास्त्र के पठन में सर्वप्रथम यह मंत्र पढ़ा जाता है। तदनुसार यहां भी शास्त्र की आदि में पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र का उल्लेख किया गया है। वह इस प्रकार है णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। अर्थात्-अरिहंत भगवान् को नमस्कार हो, सिद्ध भगवान् को नमस्कार हो, आचार्य महाराज को नमस्कार हो, उपाध्याय महाराज को नमस्कार हो, लोक के सब साधुओं को नमस्कार हो। १८ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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