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प्रश्न-नैरयिका भगवन् कतिविधान् पुद्गलान् उदीरयन्ति?
उत्तर-गौतम! कर्मद्रव्यवर्गणामधिकृत्य द्विविधान् पुद्गलानुदीरयन्ति । तद्यथा-अणूंश्चैव, बारदांश्चैव । शेषा अप्येव चैव भणितव्याः-वेददयन्ति निर्जीर्यन्ति; अपावर्तयन, अपवर्त्तयन्ति अपतयिष्यन्ति; समक्रमयन, संक्रमयन्ति, संक्रमयिष्यन्ति, निघत्तानकार्युः,निधत्तान , कुर्वन्ति, निधतान् करिष्यन्ति; निकाचितवन्तः, निकाचयन्ति, निकाचयिष्यन्ति। सर्वेष्वपि कर्मद्रव्यवर्गणा मधिकृत्य।
गाथाभेदितः, चितः, उपचिताः, वेदतिश्च निर्जीर्णाः । अपवर्तन-संक्रमण-निधतन-निकाचने त्रिविधः कालः ।।
मूलार्थ
प्रश्न-हे भगवन्! नारकी जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते है?
उत्तर-गौतम! कर्म द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते है। वे इस प्रकार हैं: अणु और बादर।
__ प्रश्न-हे भगवन्! नारकी जीव कितने प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं?
उत्तर-हे गौतम! आहारद्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं। वे इस प्रकार हैं- अणु और बादर। इसी प्रकार उपचय समझना।
प्रश्न-हे भगवन्! नारकी जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं?
उत्तर-गौतम! कर्मद्रव्य- वर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं। वह इस प्रकार है-अणु और बादर। शेष पद भी इस प्रकार कहने चाहिए-वेदते हैं, निर्जरा करते हैं, अपवर्तन को प्राप्त हुए, अपवर्तन को प्राप्त हो रहे हैं, अपवर्तन को प्राप्त करेंगे। संक्रमण करेंगे। निधत्त होते हैं, निधत्त होंगे। निकाचित हुए, निकाचित होते हैं, निकाचित होंगे। इन सब पदों में भी कर्मद्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा से (अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए)।
___ गाथार्थः-भिदे, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, वेदे गये और निर्जीर्ण हुए। अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन इन चार पदों में तीनों प्रकार का काल कहना चाहिए। २६० श्री जवाहर किरणावली