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(4) जिन पुद्गलों का भूतकाल में आहार नहीं किया और भविष्य में भी आहार नहीं किया जायेगा, वह पुद्गल शरीर रूप में परिणत हुए?
पूर्वकाल में जिन पुद्गलों का आहार किया गया हो या संग्रह किया गया हो उन्हें आहृत या आहारित कहते हैं। संग्रह करना और खाना, दोनों ही आहार हैं।
पुद्गल शब्द से यहां पुद्गल-स्कंध समझना चाहिए, परमाणु नहीं और परिणत होने का अर्थ, शरीर के साथ एकमेक होकर शरीर रूप में हो जाना, यहां ग्रहण करना चाहिए।
आहार का परिणाम है-शरीर बनना। जो आहार शरीर के साथ एकमेक हो जाता है अर्थात् जिस आहार का शरीर बन जाता है, वह आहार परिणत हुआ या परिणाम को प्राप्त हुआ या परिणमा कहलाता है।
इन प्रश्नों के विषय में आचार्य का कथन है कि यह काकुपाठ है। काकुपाठ वह कहलाता है, जो कण्ठ दबाकर बोला जाये। अर्थात् जिस बात को जोर से तथा आश्चर्य सहित कहा जाता है वह कथन काकु है। यथा-क्या यह ऐसा ही है?
यह चारों प्रश्न दीखते हैं सीधे-साधे, लेकिन इनमें दार्शनिक आशय भरा हुआ है। इन्हीं चार प्रश्नों के 63 भंग होते हैं। एकसंयोगी के छह भंग हैं-(1) पूर्वाहृत (2) आह्रियमाण (3) आहरिष्यमाण (4) अनाहृत (5) अनाहियमाण (6) अनाहरिष्यमाण। इन छह पदों के त्रेसठ भंग होते हैं। प्रत्येक भंग में एक-एक प्रश्न का उद्भव होता है, अतएव त्रेसठ भंग हुए। उनका इस प्रकार
(क) (1) पर्वाहृत आरियमाण (2) पूर्वाहृत आहरिष्यमाण (3) पूर्वाहृत अनाहृन (4) पर्वाहृत अनाहियमाण (5) पर्वाहृत अनपाहरिष्ययमाण (6) आहियमाण आहरिष्माण (7) आहियमाण अनाहित (8) आहियमाण अनाहियमाण (9) आहियमाण अनाहरिष्यमाण (10) आहरिष्यमाण अनाहृत (11) आहरिष्यमाण अनाहियमाण (12) आहरिष्यमाण अनाहरिष्यमाण (13) अनाहृत अनाहियमाण (14) अनाहृत अनाहरिष्यमाण (15) अनाहियमाण अनाहरिष्यमाण।
इस प्रकार दो-दो भंगो को मिलाने से पन्द्रह भंग होते हैं। तीन का संयोग करने पर बीस भंग होते हैं और चार संयोगी पन्द्रह भंग होते हैं। इसी तरह पांच संयोगी छह भंग और छह संयोगी का एक भंग होता है। अतएव एक एक से लेकर छह संयोगी तक के कुल त्रेसठ भंग होते हैं। मगर संग्रह की अपेक्षा एक ही प्रश्न है।
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २५५