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पृच्छा ।
प्रश्न - - नैरियकाणां भगवन् ! पुर्वाहृताः पुद्गलाश्चिताः? उत्तर-यथा परिणतास्तथा चिता अपि, एवमुपचिता अपि, उदीरिताः, वेदिताः, निर्जीर्णाः ।
गाथा
परिणताश्चिताश्चोपचिताः, उदीरिता वेदिताश्च निर्जीर्णाः । एकैकस्मिन् पदे चतुर्विधाः पुद् गला भवन्ति । । मूलार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नारकियों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए? आहार किये हुए तथा (वर्तमान में) आहार किये जाने वाले पुद्गल परिणत हुए ? जो पुद्गल अनाहारित हैं तथा (आगे) आहार रूप में ग्रहण किये जाऐंगे वह परिणत हुए? या जो अनाहारित हैं और आगे भी आहत नहीं होंगे, वह परिणत हुए?
उत्तर - हे गौतम! नारकियों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए, आहार किये हुए और आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए, और परिणत होते हैं नहीं आहार किये हुए (अनाहारित) पुद्गल परिणत नहीं हुए हैं। जो पुद्गल (आगे) आहार किये जाएंगे वह परणित होंगे । अनाहारित पुद्गल परिणत नहीं हुए हैं और जो आगे आहरित नहीं होंगे, वह परिणत नहीं होंगे।
प्रश्न - हे भगवन् ! नारकियों द्वारा आहारित पुद्गल चय को प्राप्त
हुए?
उत्तर- हे गौतम! जिस प्रकार परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए। उसी प्रकार उपचय को प्राप्त हुए, उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए । गाथा
परिणत, चित, उपचित, उदीरत, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक-एक पद में चार प्रकार के पुद्गल ( प्रश्नोत्तर विषयक) होते है।
व्याख्यान - नरक के आहार के सम्बन्ध में यहां चार प्रश्न और उठते हैं। उनका आशय यह है
(1) पूर्व काल में ग्रहण किये हुए या आहार किये हुए पुद्गल क्या शरीर रूप में परिणत हुए हैं?
(2) भूतकाल में ग्रहण किये हुए या आहार किये हुए तथा वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाने पुद्गल शरीर में परिणत हुए हैं?
(3) भूतकाल में जिन पुद्गलों का आहार नहीं किया, लेकिन भविष्यकाल में जिनका आहार किया जायेगा, वे पुद्गल शरीर रूप में परिणत हुए?
२५४ श्री जवाहर किरणावली