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तात्पर्य यह है कि गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से उक्त चार प्रश्न किये। इनके उत्तर में भगवान् ने फरमाया- हे गौतम ! जिन पुदगलों का भूतकाल में आहार किया है वे भूतकाल में ही शरीर रूप परिणत हो चुके हैं। ग्रहण के पश्चात् परिणमन होता ही है:, अतएव पूर्वकाल में आहार किये हुए पुद्गल पूर्वकाल में ही परिणत हो गये।
दूसरे प्रश्न में भूतकाल के साथ वर्तमान सम्बन्धी प्रश्न किया गया है। इसके उत्तर में भगवान् का कथन यह है कि जिनका आहार हो चुका वे पुद्गल परिणत हो चुके हैं और जिनका आहार हो रहा हैं वे परिणत हो रहे
यहां टीकाकार कहते हैं कि जिन पुद्गलों का आहार किया और जिनका वर्तमान में आहार किया जा रहा है, उसके विषय में कहना चाहिए कि वे पुद्गल परिणत होंगे। मगर यहां कहा गया है कि परिणत हो रहे हैं। सूत्रकार स्वयं कहते हैं कि जिन पुद्गलों का आहार किया जा रहा है और आगे किया जायेगा वे पुद्गल परिणत होंगे। तात्पर्य यह है कि वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गल उसी समय शरीर रूप में परिणत नहीं हो सकते। बल्कि वे भविष्य में ही परिणत होंगे। अतएव 'जिन पुद्गलों का आहार किया जा चुका और जिनका आहार किया जा रहा है, वह पुद्गल परिणत हो रहे हैं, यह कथन युक्ति संगत नहीं मालूम होता। उनके लिए 'परिणत होंगे' ऐसा कहना चाहिए।
टीकाकार का यह कथन नय-विशेष की विवक्षा से ठीक ही है।
तीसरा प्रश्न भविष्य के सम्बन्ध में है। उसका सरल उत्तर यही है कि भविष्य में जिन पुद्गलों का आहार करेंगे, वे पुद्गल भविष्य में परिणत
होंगे।
___ चौथा यह था कि जिन पुद्गलों का भूतकाल में आहार नहीं किया और भविष्य में भी आहार नहीं किया जायेगा, वे पुद्गल क्या शरीर रूप में परिणत हुए? इसका उत्तर यह है कि ऐसे पुद्गल परिणत नहीं होंगे। जिनका ग्रहण ही नहीं हुआ, उनका शरीर रूप में परिणमन भी न होगा।
__ पहले जो त्रेसठ भंग बतलाए गये है, उन सबका इसी आधार पर समाधान समझ लेना चाहिए।
आहार किये हुए पुद्गल जब शरीर के भीतर गये तो उनका चय, उपचय भी होगा ही। इसलिए गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि जीव ने जिन पुद्गलों का आहार किया वे पुद्गल चय को प्राप्त हुए? परिणमन के २५६ श्री जवाहर किरणावली