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________________ हैं और चरम शरीरी अर्थात् पहले ही मनुष्य भव में मोक्ष जाने वाले जीव चौथे नरक में भी रहते हैं। लेकिन भावी तीर्थंकर का, तीर्थंकर गोत्र का आयुष्क नरक में ही बंधता है तो वे उत्कृष्ट से उत्कृष्ट आहार-पुद्गल खींचते हैं। यद्यपि उत्कृष्ट आहार-पुद्गल उनके लिए बाहर से वहां नहीं पहुंचते हैं, लेकिन नरक योनि के पुद्गलों में से ही वे ऐसे उत्तम पुद्गल ग्रहण करते हैं, जिनसे उनका दिव्य शरीर बनेगा। ___ भावी तीर्थंकरों ने तीर्थकर गोत्र की जो सामग्री मनुष्य जन्म में बांधी उसके साथ ही दूसरे नरक की भी सामग्री उपार्जित की। नरक की इस सामग्री से ही वे नरक गये हैं। उनका तीर्थंकर गोत्र का आयुष्क नरक में ही बंधेगा। नरक के जीव जिन पुद्गलों का आहार करते हैं, वह अशुभ और घृणित होते हैं, लेकिन सम्यग्दृष्टि और भावी तीर्थंकर अशुभ में से भी शुभ को खींचकर आहार करते हैं। अशुभ पुद्गलों में शुभ पुद्गल उसी प्रकार विद्यमान रहते हैं, जैसे मालवा की काली मिट्टी में हिंगलु के समान लाल जानवर रहते हैं। मिट्टी तो काली और खुरदरी होती है, मगर उसमें वह जानवर लाल और मुलायम होता है। तात्पर्य यह है कि उपादान अगर समर्थ हो तो वह अशुभ में से भी शुभ को खींच सकता है। दुर्गन्ध वाला विष्ठा खेतों में पड़ता है, मगर उससे होने वाला गुलाब दुर्गन्ध वाला नहीं, सुगन्ध वाला होता है। प्रकृति से प्रत्येक पदार्थ दूसरे की ओर खिंचता है, मगर जिसमें बल होता है, वह खींच लेता है। गुलिश्तां में एक कहानी है। एक बार बादशाह के हमामखाने में मिट्टी आई। उस मिट्टी से खुशबू आ रही थी। पूछताछ करने पर पता लगा कि इस मिट्टी पर सुगंधित फूल खिले थे। और वे सूखकर इस पर गिरे। यह खुशबू उन्हीं से आई है। बादशाह ने उन फूलों को भी मंगवाया। उन फूलों में फूलों की ही खुशबू थी, मिट्टी की नहीं थी। इससे प्रकट हुआ कि मिट्टी ने फूलों की खुशबू खींच ली, लेकिन फूलों ने मिट्टी की गंध अपने में नहीं आने दी। __ तीर्थंकरों को नरक में भी तीन शुभ लेश्याएं होती है। वे शुभ लेश्याएं ग्रहण कर शुभ बनते हैं। यहां तक छत्तीस द्वारों का वर्णन हुआ। इनमें नरक के जीवों के आहार का विचार किया गया है। २४६ श्री जवाहर किरणावली 8 88888888888888 8 8888888888888888888888888 25200-2028888888888899999996558888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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