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आयुकर्म का क्षय हो जाय और नया आयु कर्म न बँधे यही मोक्ष का कारण
__ यद्यपि मरण असंख्यात समय में होता है लेकिन पहले समय में ही जो मरने लगा उसे मरा कहा जा सकता है।
पाँचवा पद है-'णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिण्णे।' समस्त कर्मों को अकर्म रूप में परिणत कर देना, यहाँ निर्जरा करना कहा गया है। यह स्थिति संसारी जीव ने कभी नहीं प्राप्त की है। उसने कभी शुभ कर्म किये, कभी अशुभ कर्म किये, परन्तु समस्त कर्मों का नाश कभी नहीं किया। आत्मा के लिए यह स्थिति अपूर्व है। अतएव इस पद का अर्थ अन्य पदों से भिन्न है। इस प्रकार अन्त के पाँच पद भिन्न भिन्न अर्थ वाले हैं।
शंका- पहले के जिन चार पदों को एकार्थक कहा है, उनमें भी काम अलग अलग हुआ है। और अन्त के जिन पाँच पदों को भिन्नार्थक कहा है, उनमें भी काम अलग अलग हुआ है। ऐसी स्थिति में चार को एकार्थक कहकर इन पाँच पदों से और पाँच पदों को भिन्नार्थक कहकर पूर्ववर्ती चार पदों से अलग क्यों किया गया है?
उत्तर-पूर्ववर्ती चार पदों से केवलज्ञान की उत्पत्ति रूप एक ही कार्य होता है अतः उन्हें एकार्थक कहा है और पिछले पाँच पद विगत पक्ष की अपेक्षा भिन्न अर्थ वालेकहे गये हैं। 'विगत' का अर्थ है विनाश । वस्तु की एक पर्याय का नाश होकर दूसरी पर्याय होना विनाश है- अर्थात् एक अवस्था से दूसरी अवस्था होना विनाश होना कहलाता है। एकान्त नाश किसी वस्तु का नहीं हो सकता; क्योंकि कोई भी पदार्थ सत् से असत् नहीं हो सकता। इस प्रकार वस्तु विनाश की अपेक्षा से पांच पदों को भिन्नार्थक माना गया है। इनकी भिन्नार्थकता इस प्रकार है
(1) छिद्यमान पद में कर्म खंडवे का नाश होना बतलाया गया है। (2) भिद्यमान पद में कर्म पुद्गल का नाश बतलाया गया है। (3) दह्यमान पद में कर्म का अकर्म होना कहा गया है। (4) म्रियमाण पद में आयु कर्म का अभाव होना कहा है। (5) निर्जीर्यमाण पद में समस्त कर्मों का नष्ट होना सूचित किया है।
इस प्रकार विगत पक्ष की अपेक्षा इन पाँच पदों को भिन्न अर्थ वाला माना गया है।
प्रश्न यह था कि पाँचवें अंग के पहले शतक के पहले उद्देशक में पहले पहल 'चलमाणे चलिए' यह पद क्यों आया? इस प्रश्न का उत्तर इस २२० श्री जवाहर किरणावली