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एकार्थ-अनेकार्थ
श्री गौतम स्वामी के प्रथम प्रश्न के अन्तर्गत नौ प्रश्नों का उत्तर भगवान महावीर ने दिया। तत्पश्चात गौतम स्वामी भगवान के प्रति पुनः प्रश्न करते हैं।
मूल-एएणं भंते! नव पया कि एगट्ठा? णाणा घोसा? णाणा वंजणा? उदाहु णाणाट्ठां? णाणा घोसा? णाणा वंजणा?
गौयमा! चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेइज्जमाणे वेइए, पहिज्जमाणं पहीणे, एएणं चत्तारि पया एगट्ठा णाणा घोसा, णाणा वंजणा उप्पण्णपक्खस्स। छिज्जमाणे छिण्णे, भिज्जमाणे मिण्णे, दड्डमाणे दड्डेमिज्जमाणे मडे, निज्जरिज्जमाणे, निज्जिण्णे एए णं पंच पया णाणट्ठा, णाणा घोसा णाणा वंजणा विगयपक्खस्स।
__-एतानि भगवन्! नव पदानि किमेकार्थानि नानाघोषाणि, नानाव्यञ्जनानि; उताहो नानार्थानि, नानाघोषाणि, नानाव्यञ्जनानि;?
गौतम! चलत् चलितम् उदीर्यमाणमुदीरितम्, वेद्यमानं वेदितम्, प्रहीयमाणं प्रहीणम् एतानि चत्वारि पदानि एकार्थानि नाना घोषाणि, नानाव्यञ्जनानि, उत्पन्नपक्षस्य । छिद्यमानं छिन्नम्, भिद्यमानं भिन्नम्, दह्यमानं दग्धम्, म्रियमाणं मृतम्, निर्जीर्यमाणं निर्जीर्णम्, एतानि पंचपदानि नानार्थानि, नाना घोषाणि, नानाव्यञ्जनानि, विगतपक्षस्य।
मूलार्थ-भगवन्! यह नौ पद क्या एक अर्थ वाले नाना घोष वाले और नाना व्यंजन वाले हैं? अथवा नाना अर्थ वाले, नाना घोष वाले और नाना व्यंजन वाले हैं?
हे गौतम! जो चल रहा है वह चला, जो उदीरा जा रहा है वह उदीरा गया, जो वेदा जा रहा है वह वेदा गया, जो नष्ट हो रहा है वह नष्ट हुआ, यह चार पद उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से एक अर्थ वाले नाना घोष वाले और
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २१३