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नाना व्यंजनों वाले हैं। तथा जो छिद रहा है वह छिदा, जो भिद रहा है वह भिदा, जो जल रहा है वह जला, जो मर रहा है वह मरा, जो खिर रहा है वह खिरा, यह पाँच पद विगत पक्ष की अपेक्षा से नाना अर्थ वाले, नाना घोष वाले और नाना व्यंजनों वाले हैं |
व्याख्यान - गौतम स्वामी का प्रश्न यह है कि इन नौ पदों के घोष और व्यंजन तो निराले - निराले हैं ही परन्तु अर्थ भी इनका निराला निराला है या एक ही ? अर्थात यह पद एकार्थक हैं या नानार्थक हैं?
एकार्थक पद दो प्रकार के होते हैं-प्रथम तो एक ही विषय की बात को एकार्थक कहते हैं, दूसरे जिन पदों का मतलब एक हो उन्हें भी एकार्थक कहते हैं ।
घोष तीन प्रकार के होते हैं - (1) उदात्त- जो उच्च स्वर से बोला जाय (2) अनुदात्त - जो नीचे स्वर से बोला जाय और (3) स्वरित्त -जो न विशेष उच्च स्वर से, न विशेष नीचे स्वर से बल्कि मध्यम स्वर से बोला जाय । इस विषय का विशेष ज्ञान स्वर - विज्ञान को समझने से हो सकता है। शास्त्रकार ने एकार्थक और नानार्थक की एक चौभंगी बनाई है - (1) समानार्थक समान व्यंजन
(2) समानार्थक विविध व्यंजन
(3) भिन्नार्थक समान व्यंजन
(4) भिन्नार्थक भिन्न व्यंजन
कई पद समान अर्थ वाले और समान व्यंजन एवं समान घोष वाले होते हैं। जैसे क्षीर-क्षीर। इन दोनों पदों का अर्थ एक है, घोष भी एक है और व्यंजन भी एक ही है । अतएव यह पद समानार्थक समान व्यंजन वाले पहले भंग के अन्तर्गत हैं ।
कई एक पद समान अर्थ वाले और भिन्न व्यंजन वाले होते हैं। जैसे क्षीर, पय। यहां इन दोनों पदों का अर्थ तो समान है- दूध, लेकिन इनके व्यंजन अलग अलग हैं और घोष भी अलग हैं।
कई पद ऐसे होते हैं कि उनका अर्थ तो भिन्न भिन्न होता है, मगर व्यंजन समान होते हैं। जैसे- अर्कक्षीर (आक का दूध), गौ क्षीर (गाय का दूध), महिषीक्षीर (भैंस का दूध) आदि। इन पदों में क्षीर शब्द समान व्यंजन वाला है, लेकिन उसका अर्थ भिन्न-भिन्न है । अर्थात अक्षरों की समानता होने पर भी अर्थ में विलक्षणता है ।
२१४ श्री जवाहर किरणावली