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________________ यहां 'संजातकामः' पद में 'सम् उपसर्ग का प्रयोग किया गया है। यहां 'संजातकामः' का अर्थ है अत्यन्त इच्छा वाला-प्रबल कामना वाला। जैसे इस जगह 'सम्' पद अत्यन्तता का बोधक है उसी प्रकार उक्त पदों में भी ‘सम्' पद अत्यन्तता का बोधक है। --- _ 'संजायसड्ढ़े' की ही तरह 'संजायसंसए' और 'संजायकोउहले' पदों का अर्थ समझना चाहिए। और इसी प्रकार 'समुप्पणसड्ढे' 'समुप्पपण्णसंसए' तथा समुप्पण्णकोउहले,' पदों का भाव भी समझ लेना चाहिए। यह बारह पदों का अर्थ हुआ। इस अर्थ में आचार्यों का किंचित् मतभेद है। कोई आचार्य इन बारह पदों का अर्थ अन्य प्रकार से भी कहते हैं। वे 'श्रद्धा' पद का अर्थ 'पूछने की इच्छा, संशय से उत्पन्न होती है और संशय कौतूहल से उत्पन्न हुआ। यह सामने ऊंची सी दिखाई देने वाली वस्तु मनुष्य है या लूंठ है? इस प्रकार का अनिश्चयात्मक ज्ञान संशय कहलाता है। इस प्रकार व्याख्या करके आचार्य एक का दूसरे पद के साथ संबंध जोड़ते हैं। अर्थात् श्रद्धा के साथ संशय का सम्बन्ध जोड़ते हैं और संशय से कौतूहल का सम्बन्ध जोड़ते हैं। कौतूहल' का अर्थ उन्होंने यह किया है-'हम यह बात कैसे जानेंगे- इस प्रकार की उत्सुकता को कौतूहल कहते हैं। इस प्रकार व्याख्या करके वह आचार्य कहते हैं कि इन बारह पदों के चार-चार हिस्से करने चाहिए। इन चार हिस्सों में एक हिस्सा अवग्रह का है, एक ईहा का है, एक अवाय का है और एक धारणा का है। इस प्रकार इन चार विभागों में बारह पदों का समावेश हो जाता है। दूसरे आचार्य का कथन है कि इन बारह पदों का समन्वय दूसरी ही तरह से करना चाहिए। इसके मन्तव्य के अनुसार बारह पदों के भेद करके उन्हें अलग-अलग करने की आवश्यकता नहीं है। जात, संजात, उत्पन्न, समुत्पन्न इन सब पदों का एक ही अर्थ है। प्रश्न होता है कि एक ही अर्थ वाले इतने पदों का प्रयोग क्यों किया गया है? इस प्रश्न का उत्तर वह आचार्य देते है कि भाव को बहुत स्पष्ट करने के लिए इन पदों का प्रयोग किया गया है। एक ही बात को बार-बार कहने से पुनरुक्ति दोष आता है। अगर एक ही भाव के लिए अनेक पदों का प्रयोग किया गया है तो यहां भी यह दोष क्यों न होगा? इस प्रश्न का उत्तर उन आचार्य ने यह दिया है कि स्तुति करने में पुनरुक्ति दोष नहीं माना जाता। शास्त्रकार ने विभिन्न पदों द्वारा एक ही बात १७४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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