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भगवान् का मोक्ष जाना निश्चित है। अगर वे भाषण न करें तो भी उनका मोक्ष रुक नहीं सकता। लेकिन जिज्ञासु भव्य जीवों के हित के लिए उन्होंने छोटी-छोटी बातों का भी निर्णय दिया है। यद्यपि भगवान् निर्णय दे रहे है। मगर उनका निर्णय समझने वाला कोई ज्ञानी होना चाहिए, सो वह गौतम स्वामी है। जैसे बॉरिस्टर बॉरिस्टरी पास करता है, उसी प्रकार गौतम स्वामी ने चार ज्ञान और चौदह पूर्व या सर्वाक्षर सन्निपात में पूर्ण योग्यता प्राप्त की है।
इस प्रकार भगवान् प्रधान न्यायाधीश और गौतम स्वामी बॉरिस्टर के स्थान पर हैं। फिर भी प्रश्न कितना सादा है! यह प्रश्न हमारे लिए है, क्योंकि हम छद्मस्थ उलझन में पड़ जाते हैं और मतवाद के वादविवाद में गिर जाते हैं। अतएव गौतम स्वामी ने बॉरिस्टर बनकर भगवान् महावीर से उन प्रश्नों का निर्णय कराया है। इस निर्णय (फैसले) की नकल सुधर्मा स्वामी ने ली है। सुधर्मा स्वामी ने भगवान् के निर्णय की जो नकल प्राप्त की थी, वही जम्बू स्वामी प्रभृति उपकारी महापुरुष सुनाते आये हैं। इसी से हमें उसका किंचित् ज्ञान हुआ है। इन सब महर्षियों का हमारे ऊपर असीम उपकार है।
अन्तिम छह पदों में से पहले के तीन पद इस प्रकार हैं -संजायसड्ढे, संजायसंसए और संजायकोउहले। इन तीनों पदों का अर्थ वैसा ही है जैसा कि जायसड्ढे, जायसंसए और जायकोऊहले पदों का बतलाया जा चुका है। अन्तर केवल यही है कि इन पदों में 'जाय' के साथ 'सम्' उपसर्ग लगा हुआ है। 'जाय' का अर्थ है-प्रवृत्त, और 'सम्' उपसर्ग अत्यन्तता का बोधक है। जैसे 'मैंने कहा' इसके स्थान पर व्यवहार में कहते हैं-मैंने बहुत कहा-खूब कहा' 'मैं बहुत चला, मैंने खूब खाया' आदि। इस प्रकार जैसे अत्यन्तता का भाव प्रकट करने के लिए बहुत या खूब शब्द का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार शास्त्रीय भाषा में अत्यन्तता बतलाने के लिए 'सम्' शब्द लगाया जाता है। अतएव इन तीनों पदों का यह अर्थ हुआ कि बहुत श्रद्धा हुई, बहुत संशय हुआ और बहुत कौतूहल हुआ।
___ 'सम्' उपसर्ग बहुतता का वाचक है, इसके लिए साहित्य का प्रमाण उद्घृत किया गया है
"संजातकामो बलमिद्विभूत्यां, मानात् प्रजाभिः प्रतिमाननाच्च ।।' "ऐन्ट्रैश्वर्य प्रकर्षण जातेच्छ: कार्तवीर्यः'
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १७३