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घर में भी सावधान रहने के लिए चेतावनी दी जाती है, घर से बाहर भी चेताया जाता है, कि सावधान रहना और अन्तिम बार विदा देते समय भी चेतावनी दी जाती है। एक ही बात बार-बार कहना पुनरुक्ति ही है, लेकिन पिता होने के नाते मनुष्य अपने पुत्र को बार-बार समझाता है। यही पिता-पुत्र का सम्बन्ध सामने रखकर महापुरुषों ने शिक्षा की लाभप्रद बातों को बार-बार दोहराया है। ऐसा करने में कोई हानि नहीं है, वरन् लाभ ही होता है।
गौतम स्वामी चार ज्ञान और चौदह पूर्वो के धनी थे। फिर भी उन्हें 'चलमाणे चलिए' के साधारण सिद्धान्त पर संशय और कुतूहल हुआ ! यह एक तर्क है। इस तर्क का समाधान स्वयं टीकाकार ने आगे किया है, किन्तु थोड़े से शब्दों में यहां भी स्पष्टीकरण किया जाता है।
गुरु और शिष्य के संबंध से सूत्र की निष्पत्ति होती है। श्रोता और वक्ता दोनों ही योग्य हों तभी बात ठीक बैठती है। भगवान् महावीर सरीखे वक्ता और गौतम स्वामी जैसे श्रोता खोजने पर भी अन्यत्र नहीं मिलेंगे। ऐसा होने पर भी गौतम स्वामी ने वही बात पूछी, जो सब की समझ में आ जाय। गौतम स्वामी और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तरों में यही विशेषता है। साधारण से साधारण जिज्ञासु भी इन बातों को समझ जाय, वह उलझन में न पड़े, इसी उद्देश्य से गौतम स्वामी ने भगवान् से प्रश्न किये और भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त बना दिया।
भगवान् महावीर और गौतम स्वामी दोनों ही इतनी उच्च श्रेणी के ज्ञानी थे कि उन्हें अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं थी। उनका एक मात्र ध्येय संसार का कल्याण था। इसी ध्येय की समझ रखकर गौतम स्वामी ने प्रश्न किये और जैसे प्रश्न किये गये, वैसे ही उत्तर भी दिये गये।
कल्पना कीजिए, एक प्रधान न्यायधीश है। उसके सामने बहस करने वाला एक बॉरिस्टर है। एक साधारण व्यक्ति का साधारण-सा मामला है। यद्यपि मामला छोटा और साधारण व्यक्ति का है और निर्णय न्यायाधीश करेगा, परन्तु बॉरिस्टर इसलिए खडा किया गया है कि उसकी सहायता के बिना साधारण व्यक्ति अपने भाव न्यायाधीश को नहीं समझा सकता इसी कारण बॉरिस्टर उसकी ओर से बहस करता है। लेकिन बॉरिस्टर की बहस और न्यायाधीश का निर्णय है किसके लिए? उस साधारण व्यक्ति के लिए।
__बहस करने वाला बॉरिस्टर केवल तत्व की ही बात नहीं करेगा, किन्तु मुकदमे से सम्बन्ध रखने वाली छोटी-छोटी बातें भी न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित करेगा, जिससे ठीक-ठीक न्याय प्राप्त किया जा सके। १७२ श्री जवाहर किरणावली
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