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इस प्रश्न के उत्तर में टीकाकार कहते हैं कि जो वस्तु तत्व पहले निश्चित नहीं था उसके संबंध में गौतम स्वामी को संशय उत्पन्न हुआ। गौतम स्वामी का यह संशय अपूर्व ज्ञान-ग्रहण होने से आत्मा का घातक नहीं है।
भगवान् गौतम स्वामी को किस वस्तु तत्व के जानने के संबंध में संशय हुआ? इसके लिए टीकाकार स्पष्ट करते हैं कि भगवान् महावीर का सिद्धान्त यह है कि
चलमाणे चलिए। अर्थात्-जो चल रहा है वह चला।
सूत्रार्थ में चलने वाले को चला कहा, इससे यह अर्थ निकलता है कि जो चलता है वही चला। जैसे एक आदमी कलकत्ता के लिए चला। इस चलते हुए 'गया' कहना यह एक अर्थ का बोधक है।
'चलता है' यह कथन वर्तमान का बोधक है और 'चला' यह भूतकाल या अतीतकाल का बोधक है। 'चलता है यह वर्तमान की बात है और 'चला यह भूतकाल की बात है। अतएव संशय पैदा होता है कि जो बात वर्तमान की है, वह भूतकाल की कैसे कह दी गई? शास्त्रीय दृष्टि से इस विरोधी काल के कथन को एक ही काल में बतलाने से दोष आता है। ऐसी दशा में यह कथन निर्दोष किस प्रकार कहा जा सकता है?
जमाली संशय से ही भ्रष्ट हुआ था और गौतम स्वामी संशय से ही ज्ञानी हुए थे। जमाली के संबंध में 'संशयात्मा विनश्यति' यह कथन चरितार्थ हुआ और गौतम स्वामी के विषय में 'न संशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति यह कथन चरितार्थ हुआ।
जो संशय निर्णयात्मक होता है अर्थात् जिससे गर्भ में निर्णय का प्रयोजन होता है वह लाभदाता है; और जो संशय निर्णय के लिए नहीं, अपितु हठ के लिए होता है वह नाश करने वाला होता है। जमाली का संशय हठ के लिए था निर्णय के लिए नहीं, इस कारण वह पतित हो गया। इससे विरुद्ध गौतम स्वामी का संशय निर्णय करने की बुद्धि से, वस्तु तत्व को बारीकी से समझने के प्रयोजन से था, उसमें हठ के लिए गुंजाइश नहीं थी, इसलिए गौतम स्वामी की आत्मा शुद्ध और ज्ञानयुक्त हो गई।
___ 'जायकोउहले अर्थात् जातकुतूहलः । गौतम स्वामी को कौतूहल उत्पन्न हुआ अर्थात् उनके हृदय में उत्सुकता उत्पन्न हुई। उत्सुकता यह कि मैं भगवान् से प्रश्न करूंगा, तब भगवान् मुझे अपूर्व वस्तु तत्व समझावेंगे, उस
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १६६