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करके न बहुत पास, न बहुत दूर भगवान् के सामने विनय से ललाट पर हाथ जोड़ कर भगवान् के वचन सुनने की इच्छा करते हुए भगवान् को नमस्कार करते और उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले (3)
___ व्याख्या-श्री सुधर्मा स्वामी ने गौतम स्वामी के गुणों का वर्णन किया। अब भगवती सूत्र में वर्णित प्रश्नोत्तर किस जिज्ञासा से हुए हैं, यह वर्णन प्रारंभ से ही सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी को सुनाने लगे। उन्होंने कहा -हे जम्बू ! जब गौतम स्वामी ध्यान रूपी कोठे में विचरते थे उस समय उनके मन में एक श्रद्धा उत्पन्न हुई।
'जायसड्ढे' अर्थात् जातश्रद्धः । 'जात' का अर्थ प्रवृत्त और उत्पन्न दोनों हो सकते हैं। यहां 'जात' का अर्थ प्रवृत्त है। अर्थात् श्रद्धा में प्रवृत्ति हुई।
__जात का अर्थ प्रवृत्त हुआ। रहा श्रद्धा का अर्थ। विश्वास करना श्रद्धा कहलाता है लेकिन यहां श्रद्धा का अर्थ इच्छा है। तात्पर्य यह हुआ कि गौतम स्वामी की प्रवृत्ति इच्छा हुई। किस प्रकार की इच्छा में प्रवृत्ति? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए कहा गया है कि जिन तत्वों का वर्णन किया जायेगा, उन्हें जानने की इच्छा में गौतम स्वामी की प्रवृत्ति हुई। इस प्रकार तत्व जानने की इच्छा में जिसकी प्रवृत्ति हो उसे 'जातश्रद्ध' कहते हैं।
जातसंशय अर्थात् संशय में प्रवृत्ति हुई। यहां इच्छा की प्रवृत्ति का कारण बतलाया गया है। गौतम स्वामी की इच्छा में प्रवृत्ति होने का कारण यह था कि उनकी संशय में प्रवृत्ति हुई, क्योंकि संशय होने से जानने की इच्छा होती है। जो ज्ञान निश्चयात्मक न हो, जिसमें परस्पर विरोधी अनेक बाजू मालूम पड़ते हों वह संशय कहलाता है। यथा-'यह रस्सी है या सर्प है?' इस प्रकार का संशय होने पर उसे निवारण करने के लिए यथार्थता जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। गौतम स्वामी को तत्व-विषयक-इच्छा हुई क्योंकि उन्हें संशय हुआ था।
संशयात्मा विनश्यति। अर्थात्-शंकाशील पुरुष नाश को प्राप्त होता है। दूसरी जगह कहा है
न संशयमनारूह्य नरो भद्राणि पश्यति। अर्थात्-संशय उत्पन्न हुए बिना-संशय किये बिना मनुष्य को कल्याण मार्ग दिखलाई नहीं पड़ता।
__ तात्पर्य यह है कि एक संशय आत्मा का घातक होता है और दूसरा संशय आत्मा का रक्षक होता है। गौतम स्वामी को कौनसा संशय उत्पन्न हुआ? १६८ श्री जवाहर किरणावली