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यह किस्सा है। इसमें प्रयोजन नहीं। इसका उल्लेख करने का आशय यह है कि स्वप्न में ऐसी बात देखी-सुनी जाती है, जो कभी देखी-सुनी नहीं
__कई लोग कहते हैं-बैठे-बैठे स्वर्ग का हाल कैसे मालूम हो जाता है? लेकिन उनसे पूछो-सोने पर इस प्रकार की बातें कैसे मालूम हो जाती हैं ? जैसे स्वप्न में अनदेखी और अनसुनी बातें मालूम हो जाती हैं, उसी प्रकार स्वर्ग का हाल भी मालूम हो जाता है।
क्षाभिक गुण की तो बात ही क्या, क्षायोपशमिक गुण में भी इतनी शक्ति है कि जो बात कभी देखी नहीं वह भी देखने को मिल जाती है।
निद्रा में जो सहज रीति से और थकावट से उत्पन्न होती है, में इतनी शक्ति है तो पराक्रम और योग की शक्ति से इन्द्रिय-वृत्ति का निरोध कर ध्यान में एकाग्र होने से प्रकट होने वाले ज्ञान का कहना ही क्या है? इसीलिए गौतम स्वामी इन्द्रिय और मन को इधर-उधर न जाने देकर ध्यान रूपी कोठे में लीन रखते हैं।
गौतम स्वामी को उस ध्यान में क्या लहर पैदा हुई, यह बात सुधर्मा स्वामी आगे चलकर बताएंगे।
सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी को गौतम स्वामी के ध्यान, विनय आदि का वर्णन क्यों सुनाया? इसलिए कि जम्बू स्वामी को और आगे की परम्परा को शिक्षा देनी थी। जब सासू यह चाहती है कि मेरी बहू सुधर जाय और चिड़चिड़ न करना पड़े तो वह अपनी लड़की को ससुराल जाते समय शिक्षा देती है कि -बेटी, ऐसा काम करना कि सब तेरी और मेरी प्रशंसा करें। तू चाहे तो मुझे धन्यवाद दिला सकती है और तू चाहे तो धिक्कार भी दिला सकती है।
सासू कहती है बेटी से, मगर सुनती बहू भी है। सासू समझती है कि यदि बहू में थोड़ी भी बुद्धि होगी तो मैंने बेटी को लक्ष्य करके जो कहा है उसे बहू समझ जायगी। अगर बहू में इतनी भी बुद्धि न होगी तो किटकिट करने से क्या लाभ है? इससे तो क्लेश ही अधिक बढ़ेगा।
सासू अगर लड़की को ऐसी शिक्षा देगी तब तो बहू भी सुनकर, समझकर सुधरेगी। अगर उसने अपनी बेटी को उल्टा ही समझाया कि-देख बेटी, ससुराल में ज्यादा काम करके तन मत तोड़ना। सास की बात मत सहना। सास ज्यादा कुछ कहे तो डटकर सामने हो जाना। हम लोग हलके कुद के नहीं है, न किसी से रुपया ही गिनाया है। उल्टा हमने दिया ही है। १६४ श्री जवाहर किरणावली