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है। कभी-कभी पूर्वभव की बातें भी स्वप्न में दिखने लगती हैं, और कभी आगे होने वाली घटनाएं दिखने लगती हैं।
शालिवाहन राजा के संबंध में एक कथा है। एक रात वह सो रहा था । उसने स्वप्न में देखा कि मैं कनकपुर पट्टन नामक नगर को गया हूं। वहां के राजा की पुत्री हंसावली पर मैं मुग्ध हो गया हूं और उसके साथ मेरा विवाह हो रहा है। विवाह होने के पश्चात् मैं उससे वार्त्तालाप करता हुआ विश्राम कर रहा हूं। राजा स्वप्न में इस आनन्द में इतना विभोर हो गया कि सवेरा होने पर भी नहीं उठा। लोग आश्चर्य करने लगे । अन्त में प्रधान ने जाकर उसे जगाया। प्रधान के जगाने पर राजा जाग तो गया मगर उस पर बहुत रुष्ट हुआ। कहने लगा-‘प्रधान ! तुमने मेरा आनन्द भंग कर दिया है, इसलिए तू व के योग्य हो ।'
राजा तलवार लेकर मंत्री को मारने के लिए उद्यत हुआ । मन्त्री चतुर था। उसने राजा से कहा- 'मैं आपके अधीन हूं। कहीं जाता नहीं हूं। आप जब चाहें तभी मुझे मार सकते हैं। लेकिन मेरी एक प्रार्थना है। पहले मेरी प्रार्थना सुन लीजिए, फिर चाहें तो प्राण ले लीजिए । मगर आप मेरी प्रार्थना सुनने से पहले ही मुझे मार डालेंगे तो आपको पश्चात्ताप होगा कि मन्त्री न जाने क्या कहना चाहता था!'
राजा ने मन्त्री की यह बात स्वीकार की। कहा- 'बोलो, क्या कहना चाहते हो?'
मन्त्री ने कहा- 'मैं अनुमान करता हूं कि आप इस समय कोई स्वप्न देख रहे थे और उसी के सुख में तल्लीन हो रहे थे। मैंने आकर आपको जगा दिया और आपका सुख - स्वप्न भंग हो गया। यही बात है न?'
राजा बोला- हां, बात तो यही है ।'
मन्त्री ने कहा- आप स्वप्न में जो सुख भोग रहे थे, वह सुख अगर आप मुझे सुना दें तो मैं जिम्मेवारी लेता हूं कि उसे प्रत्यक्ष कर दिखाऊंगा | स्वप्न का सुख तो क्षणिक था, थोड़ी देर बाद वह नष्ट हो ही जाता। मगर मैं स्वप्न का वही सुख वास्तविक कर दिखाऊंगा ।
राजा ने अपना स्वप्न मंत्री को कह सुनाया। अन्त में कहा - 'सुख-समय में जगाकर तुमने मेरा सुख भंग किया है। अब अपनी प्रतिज्ञा याद रखना ।' मंत्री ने कहा- 'इस सुख को प्रत्यक्ष कर दिखाना कौन बड़ी बात है ? कनकपुर पट्टन भी और हंसावली नामक राजकुमारी भी वहां है। यह मुझे मालूम है। मैं हंसावली को आप से अवश्य मिला दूंगा।'
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १६३