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सो क्या वह मनुष्य नहीं हैं? सारी सुकुमारता क्या आपके ही हिस्से आई? और क्या आप गौतम स्वामी के शिष्य नहीं हैं? गौतम स्वामी 'उच्छूढ़ शरीर' थे, भोगी शरीर वाले नहीं थे। आपके गुरु शरीर को भी त्याग दें और आप पाप को बढ़ाने वाले और संसार को रुलाने वाले कपड़े भी नहीं त्याग सकते? अगर ऐसे कपड़े भी आपसे नहीं छूट सकते तो आप 'उच्छूढ़ शरीर' का पाठ कैसे पढ़ेंगे ? जिस सेना का नायक वीर हो उसके सैनिक कायर क्यों हों ?
गाढ़ा (खद्दर) पहनने से यदि आपको गर्मी होती है तो क्या संसार में आप से बढ़ कर अमीर नहीं हैं? अगर हैं और वे गाढ़ा पहन कर देश की सेवा करते हैं तो क्या आप ऐसा नहीं कर सकते? अगर आप धर्म को दिपाने वाली छोटी-छोटी बातों का भी पालन नहीं कर सकेंगे तो बड़ी बातों का पालन करके कैसे धर्म दिपावेंगे? मिल के कपड़े त्याज्य हैं, इस विषय में किसी का मतभेद नहीं है। अगर आप इन्हें भी नहीं छोड़ सकते तो धर्म के बड़े काम कैसे कर सकोगे?
मिल के वस्त्रों की ही भांति विदेशी वस्त्र और विदेशी औषधियां भी त्याज्य हैं। क्योंकि इनमें अक्सर मांस-मदिरा चर्बी आदि का मेल रहता है । अधिकांश ऐलोपैथिक दवाइयों में मांस के सत और ब्रांडी का मिश्रण रहता है।
मित्रों! आप अपना जीवन त्यागमय बनाओ, जिससे गौतम स्वामी का नाम लेने लायक बन सको । गौतम स्वामी का जीवन ऐसा त्यागमय और सरल था कि बेले- बेले पारणा करके भी स्वयं गोचरी लेने जाते और एक बालक जिधर ले जाता, उधर ही चले जाते थे। गांधीजी की सादगी का उदाहरण इसलिए दिया है कि गौतम स्वामी दूर हैं और गांधीजी समीप हैं। अन्यथा जैन साहित्य में ऐसे-ऐसे उदाहरण मौजूद हैं कि जिन की तपस्या के सामने गांधीजी का तप-त्याग न कुछ सिद्ध होगा। जैन चरितानुयोग के ज्योति स्तम्भ अपने आपमें निराले हैं।
मित्रों ! मिल के वस्त्र दूषित हैं। शरीर पर रहने से खराबी पैदा करते हैं । इसलिए इन्हें त्यागो । अगर आप विलायती और मिल के वस्त्र नहीं त्याग सकते तो कम से कम हम साधुओं को तो नहीं ही देना । हम केवल यही चाहते हैं कि किसी भी श्रावक के शरीर पर मिल के वस्त्र न दिखें ।
बिना त्याग के जीवन शुद्ध नहीं बनता । त्याग सीखो और खान पान एवं रहन-सहन से अपने जीवन को शुद्ध बनाओ। इसी में तुम्हारा और संसार का कल्याण है ।
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १६१