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तो वह भी नष्ट हो जाती है। तुच्छता के मार्ग पर चलकर महत्ता प्राप्त करने की आशा मत करो। विष पान करके कोई अजर-अमर नहीं बन सकता।
लोग दुकान सजाते हैं। दुकान सजाने का एक उद्देश्य यह है कि लोग भभके में आ जावें और उन्हें ठगा जाये। क्या ऐसा करना अच्छा काम है? यह उद्देश्य प्रशस्त है? दुकान की सजावट के साथ अगर प्रामाणिकता हो तब तो ठीक है, मगर केवल चालबाजी के लिए सजाना कैसे ठीक कहा जा सकता है।
आज अधिकांश मनुष्य, राजा से रंक तक प्रायः इसी चालबाजी में पड़े हैं। सभी यह चाहते हैं कि हमारे दुर्गुण भले ही बने रहें मगर लोग हमारी प्रशंसा करें। मगर एक बार अपनी आत्मा से पूछो। सोचो-'हे आत्मन्! तू चाहता तो बड़ाई है, मगर अपने दुर्गुणों से आप ही पतित हो रहा है।'
___अपने को आप भूल कर हैरान हो गया । ___ माया के जाल में फंसा वीरान हो गया ।।
लोग चाहते क्या हैं और करते क्या हैं? वाहवाही चाहते हैं मगर थू-थू के काम करते हैं। यह देखते नहीं कि हमारे काम कैसे हैं? आज गांधीजी की वाहवाही हो रही है तो क्या उन्होंने वाहवाही के लिए किसी प्रकार का ढ़ोंग किया है? नहीं। उन्होंने काम ऐसे किये जिससे उनकी वाहवाह हो रही है। अगर आप ऐसे अच्छे काम नहीं कर सकते तो कम से कम झूठ वाहवाह पाने की लालसा तो न रखिए।
कोई गोटा कोई किनारी पहनकर नखरा दिखावे भारी । न हुक्म रब का कोई माने खुदा की बातें खुदा ही जाने ।।
हमारे यहां आत्मा ही खुदा है। जो खुद ही बना हो वह खुदा कहलाता है। क्या आत्मा स्वयं ही नहीं बना है? फिर क्या आत्मा की बातें आत्मा ही नहीं जानता? तुम्हारी बात तुमसे छिपी नहीं है। हे आत्मा! तू नखरेबाजी से संसार को रिझाना चाहता है, लेकिन यह देख कि तेरे में परमात्मा की आज्ञा मानने की कितनी शक्ति है? जिस कार्य के करने से और अधिक पतन होता है, वह कार्य करने से क्या लाभ है?
मिल के जिन कपड़ो को पहनने से न संसार का ही लाभ है, उन्हें पहननें में क्या लाभ है? थोड़ा परमात्मा के हुक्म को मानो तो क्या कोई हानि होगी? मिल के वस्त्र त्याग देने से क्या आत्मा का कल्याण न होगा? और मिल के वस्त्र त्याग देने पर क्या कोई कष्ट होगा? आप कह सकते हैं मोटे कपड़े गर्मी में कष्ट पहुंचाते हैं, मगर दूसरे सैकड़ों मनुष्य खादी के वस्त्र पहनते हैं, १६० श्री जवाहर किरणावली