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________________ भगवान् महावीर सदृश महान तपस्वी के प्रधान शिष्य गौतम तपस्वी न हों, यह कैसे हो सकता है? यही कारण है कि गौतम स्वामी भी घोर तप के धारक थे। साधारण मनुष्य जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता, उसे उग्र कहते हैं। इस प्रकार के तप को उग्र तप कहते हैं। गौतम स्वामी ऐसे उग्र तप से सुशोभित हैं कि साधारण पुरुष जिसके स्वरूप का चिंतन भी नहीं कर सकते। भगवान् गौतम में उग्र के साथ दीप्त तप भी हैं। दीप्त का अर्थ है-जाज्वल्यमान । अग्नि की तरह जाज्वल्यमान तप को दीप्त कहते हैं। गौतम स्वामी का जाज्वल्यमान तप कर्म रूपी वन को भस्म करने में समर्थ हैं, अतएव उन का तप दीप्त कहलाता है। भगवान् गौतम दीप्त तप के साथ ही तप्त तप के भी धारक हैं। जिस तप से कर्मों को संताप उत्पन्न हो, कर्म ठहर न सकें उसे तप्त तप कहते हैं। अथवा गौतम स्वामी ने अपने आपको आराम में न रख कर, अपने शरीर को तप रूपी अग्नि में डाल दिया, इस कारण वह तप्त-तपस्वी हैं। आपने आपको तप की अग्नि में डालने से यह लाभ हुआ कि जैसे अग्नि को कोई हाथ नहीं लगाता उसी प्रकार तप की अग्नि में पड़े हुई आत्मा को पाप या कर्म स्पर्श नहीं कर सकता। गौतम स्वामी महा तपस्वी हैं। किसी कामना से अर्थात् स्वर्ग-प्राप्ति, वैरी-विनाश या लब्धिलाभ आदि की आशा से किया जाने वाला तप महातप नहीं कहला सकता। गौतम स्वामी का तप महातप है, क्योंकि वह निष्काम भावना से किया गया है। उन्हें किसी प्रकार की कामना नहीं थी, यह गौतम स्वामी के तप का वर्णन हुआ। तपो-वर्णन के पश्चात् कहा गया है कि गौतम स्वामी 'ओराले हैं। 'ओराले' का अर्थ है भीम; अर्थात् गौतम स्वामी का तप भय उत्पन्न करता है। उनका तप पार्श्वस्थ (पासत्थ) लोगों को, जिन्हें ज्ञान दर्शन-चरित्र में रुचि नहीं है, जिनके ज्ञान आदि मंद हैं, जिन्हें इन पर श्रद्धा नहीं है, भय उत्पन्न करने वाला है। गौतम स्वामी का तप पासत्थों के लिए भयंकर है, यह गौतम गुण समझा जाये या अवगुण? गौतम स्वामी सब को निर्भय बनाने वाले हैं, प्राणी मात्र को अभयदान देने वाले हैं, फिर उनके तप से किसी को भय क्यों उत्पन्न होता है? इस प्रश्न का उत्तर एक उदाहरण से समझना ठीक होगा। मान लीजिए एक चोर चोरी करने गया। वहां राजा या कोई राजकर्मचारी मिल १५२ श्री जवाहर किरणावली 883 38888888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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