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गया,
जिससे डर गया । यह डर राजा या राजकर्मचारी से उद्भूत हुआ है या चोर के पास से पैदा हुआ है ? वास्तव में इस भय के लिए राजा या राजकर्मचारी उत्तरदायी नहीं है, चोर का पाप ही उसे डरा रहा है। राजा या राजकर्मचारी ने उसे डराया नहीं है, उसका पाप ही उसे डरा रहा है; यद्यपि राजा या कर्मचारी उसमें निमित्त बन गया है। फिर भी यह राजा का गुण ही गिना जायेगा कि पापी उससे डरते हैं। इसी प्रकार यद्यपि गौतम स्वामी पासत्थों को डराते नहीं हैं तथापि उनके तप को देख कर वे अपनी शिथिलता अनुभव करते हैं और अपनी शिथिलता से आप ही डरते हैं। इस प्रकार गौतम स्वामी के तप को निमित्त बनाकर वे भयभीत होते हैं। यह गौतम स्वामी का अवगुण नहीं गिना जा सकता। सच्चे धर्मात्मा में ऐसा प्रभाव अवश्य होना चाहिए कि उसके बिना कुछ कहे ही पापी लोग उससे कांपने लगें। ऐसा धर्मात्मा ही तेजस्वी कहलाता है ।
सुधर्मा स्वामी, जम्बूस्वामी से कहते हैं-मैंने गौतम स्वामी के साथ विहार किया है। उनके तप के प्रभाव से शिथिलाचारी पासत्थे कांपने लगते थे। यह पासत्थे अपने पासत्थेपन के कारण ही भयभीत होते थे। अगर उनमें पासत्थापन न होता तो उन्हें गौतम स्वामी अतिशय प्रिय लगते । परन्तु पासत्थेपन के कारण उन्हें गौतम स्वामी उसी प्रकार प्रिय नहीं लगते जैसे चोरों को चांदनी प्रिय नहीं लगती पासत्थों को तप प्रिय नहीं है, अतएव वे गौतम से डरते हैं।
'ओराल' का अर्थ भीम या भयंकर है और उदार अर्थ भी है । उदार प्रधान को कहते हैं । गौतम स्वामी प्रधान होने के कारण उदार कहलाते हैं। गौतम स्वामी 'घोर' हैं अर्थात् दया या घृणा से रहित हैं। उन्हें परीषह रूपी शत्रुओं को नाश करने में दया नहीं है । परिषह - शत्रु को जीतने में वह दया नहीं दिखलाते । अथवा - इन्द्रियों पर और विषय - कषाय पर वे कभी दया नहीं करते। इस अपेक्षा से गौतम स्वामी को 'घोर' कहा है।
दुर्गुणों पर और विशेषतः अपने ही दुर्गुणों पर दया दिखाने से हानि ही होती है। इसलिए इन्द्रियों को और दुर्गुणों को उन्होंने निर्दय होकर जीत लिया है। विजय वीरता से प्राप्त होती है। लौकिक युद्ध की अपेक्षा लोकोत्तर - आत्मिक युद्ध में अधिक वीरता अपेक्षित है। गौतम स्वामी ने आन्तरिक रिपुओं को काम, क्रोध आदि को वीरता के साथ, निर्दय होकर जीता था ।
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दूसरे आचार्यों ने 'घोर' का अर्थ यह किया कि गौतम स्वामी आत्मा की अपेक्षा - रहित हैं अर्थात् वे आत्मा की ओर से निस्पृह हैं। उन्हें अपने प्रति तनिक भी ममता नहीं है, अतएव उन्हें 'घोर' कहा गया है ।
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १५३