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स्वामी के शरीर के साथ उनके आत्मिक गुणों का भी संबंध है, इसी कारण उनके शरीर का ध्यान किया जाता है और आत्मिक गुणों का संबंध बताने के लिए ही उनके तप का भी उल्लेख कर दिया है।
गौतम स्वामी का ऐसा शरीर तप के प्रभाव से है। दीपक में जो प्रकाश होता है, वह अग्नि का होता है, पात्र का नहीं। अग्नि में ही ऐसी शक्ति है कि वह पात्र प्रकाशित कर देती है। इसी प्रकार तप के प्रताप से ही गौतम स्वामी का शरीर प्रकाशमान है। जिस शरीर से तप विद्यमान है वह शरीर भी वंदनीय है।
आज गौतम स्वामी नहीं है और न उनके तप की समानता करने वाला ही कोई मौजूद है, लेकिन उनका आदर्श हमारे समक्ष उपस्थित है। इसी आदर्श से अनुप्राणित होकर महात्मा लोग बड़े-बड़े तप करते हैं। साधुजन तप का केवल वर्णन ही नहीं करते, वरन् आचरण करके भी बतलाते हैं। इससे यह सिद्ध है कि शारीरिक दुर्बलता के इस जमाने में भी इतनी तपस्या की जा सकती है तो सबल संहनन वाले प्राचीन काल में कितनी तपस्या की जाती होगी!
गौतम स्वामी का तप शक्त्यानुसार साधु करते हैं तो क्या आनन्द और कामदेव का तप श्रावक करके नहीं दिखला सकते?
तप से शरीर क्षीण हो जाता है, यह धारणा भ्रमपूर्ण है। तपस्या करने से शरीर उल्टा निरोग और अच्छा रहता है। अमेरिका वालों ने बारह करोड़ पौंड या रुपये केवल उपवास चिकित्सा की खोज और व्यवस्था में व्यय किये हैं। उन्होंने जान लिया है कि उपवास मन, शरीर, बुद्धि आदि के लिए अत्यन्त लाभदायक है। उन्होंने अनेक रोगों के लिए उपवास-चिकित्सा की हिमायत की है। आपने डाक्टर पर भरोसा करके, अपना शरीर डाक्टरों की कृपा पर छोड़ दिया है, आपको उपवास पर विश्वास नहीं है, इसी कारण इतने रोग फैल रहे हैं। शारीरिक लाभ के सिवाय उपवास से इन्द्रियों का निग्रह भी होता है और संयम पालन में भी उससे सहायता मिलती है।
तप बड़ो संसार में , जीव उज्ज्वल होवे रे। कर्मारो ईधन जले, शिवपुर नगर सिधावे रे ।।तप० ।। तपस्या तो कीनी श्री महावीरजी, कठिन कर्मा जो भागा रे। धन्न मुनीश्वर तप तप्या, स्वार्थ सिद्ध तई लागा रे ||तप० ।।
संसार में तप बड़ी चीज है। तप का प्रभाव अद्भुत और अपार है। जिस काल ने, जिस देश ने और जिस समाज ने तप को अपनाया है-जो तप १५० श्री जवाहर किरणावली