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________________ दे अर्थात् शरीर से गुणों का अभेद कहने लगे तो वह कथन ठीक कैसे माना जा सकता है? राजा प्रदेशी शरीर और आत्मा को अभिन्न कहता था, इसी कारण उसे नास्तिक कहते थे, क्योंकि शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न हैं। जैसे आत्मा को देखने और जानने के लिए शरीर को देखना और जानना आवश्यक है, उसी प्रकार यदि ईश्वर को जानने के लिए मूर्ति मानी जाती है तो हानि नहीं है, बशर्ते कि यह समझ कर मूर्ति का अवलोकन किया जाये कि ईश्वर और मूर्ति अलग-अलग हैं, मैं केवल ईश्वर पर दृष्टि जमाने के लिए मूर्ति को देखता हूं। इस प्रकार विचार रखकर मूर्ति को देखा जाये और ईश्वर को मूर्ति से भिन्न माना जाये तब तो कोई गड़बड़ ही न हो, लेकिन आज तो लोग मूर्ति को ही भगवान् माने बैठे हैं। मूर्ति को भगवान् मानना जड़ को चेतन मानना है। यद्यपि शरीर और आत्मा निकटवर्ती हैं, फिर भी दोनों एक नहीं है। शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न हैं। गीता में कहा है - न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।अ 21 अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।2।। __ अर्थात्-हे अर्जुन! आत्मा वह है जो शरीर के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होती। शरीर जन्मता और मरता है परन्तु आत्मा जन्म नहीं, और मरण नहीं, हां, उपचार से आत्मा, और शरीर के साथ अवश्य जन्मती-मरती है, मगर यह उपचार है, वास्तविकता नहीं। आत्मा न भूतकाल में बनी है, न वर्तमान में बनी रही है और न भविष्य में बनेगी ही। आत्मा भूतकाल में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी। अतीत काल कितना है, इसका विचार करो। आज कल विक्रमीय संवत् 1988 है। विक्रम राजा को हुए 1988 वर्ष व्यतीत हो गये। परन्तु उससे भी पहले काल था या नहीं? इस अनन्त काल को माप करके भी आप अपने को भूल रहे हैं। आत्मा ने अनन्त काल मापा है। मापने वाला बड़ा होता है और जिसे मापा जाता है वह उससे छोटा होता है। रत्न बड़ा नहीं होता उसका मूल्यांकन करने वाला बड़ा होता है। कदाचित् तुम यह समझो कि हम सौ वर्ष पहले नहीं थे, तो यह तुम्हारी भूल होगी। आपने ऐसे-ऐसे अनन्त शरीर ग्रहण करके त्यागे हैं। आत्मा सदा से है, सदा रहेगी। आप शरीर के पीछे आत्मा को भूल बैठे हैं, यही बुराई है। इसी प्रकार लोग मूर्ति के पीछे ईश्वर को भूल बैठे हैं। मूर्ति को ऐसा पकड़ा कि और कोई बात याद न रही। यही बुराई है। १४८ श्री जवाहर किरणावली -
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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