SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कणयपुलयनिग्घसपम्हगोरे, उग्गतवे दित्ततवे, तत्ततवे, हातवे, ओराले, घोरे, घोरगुणे, घारतवस्सी, घोरबंभचेरवासी, उच्छुढसरीरे, संखित्तविउलतेयलेस्से, चौद्दसपुव्वी, चउनाणोवगए, सव्वक्खरसन्निवाई, संमणस्स भगवओ महावीरस्स अनुरसामंते, उड्ढंजाणूं, अहोसिरे, झाणकोट्ठोवगए, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे माणे विहरई।(2) संस्कृत-छाया-तेन कालेन तेन समयेन श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूति माऽनगारः, गौतमगोत्रः, सप्तोत्सेधः, समचतु रस संस्थान संस्थितः, वजर्षभनारायसहननः, कनकपुलकनिकषपक्ष्म-पद्म) गौरः, उग्रतपाः, दीप्ततपाः, तप्ततपाः, महातपाः, उदारः, घोरः, घारेःगुणः, घोरतपव्सी घोरब्रह्मचर्यवासी:, उच्छढशरीरः, संक्षिप्तपुलतेजोलेश्यः, चतुर्दशपूर्वी, चतुर्ज्ञानोपगतः, सर्वाक्षरसन्निपाती, श्रमणस्सः, भगवतः महावीरस्य अदूरसामन्ते, ऊ र्वजातुः, अधःशिराः, ध्यानकोष्ठोगतः, संयमेन तपसा आत्मनं भावयन् विहरति। (2) शब्दार्थ-उस काल, उस समय, श्रमण भगवान् महावीर के पास (न बहुत दूर, न बहुत पास) उत्कुटुकासन से, नम्र सिर किये हुए, ध्यान रूपी कोठे में प्रविष्ट, भगवान्के ज्येष्ठ बड़े शिष्य इन्द्रभूति नामक अणगार संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं। वह गौतम गोत्र वाले, सात हाथ ऊंचे, सम चौरस संस्थान वाले, वज्र-ऋषभनाराच संहनन वाले, सोने के टुकड़े की रेखा समान पद्म-पराग समान वर्ण वाले उग्र तपस्वी, दीप्ततपस्वी, तप्त तपस्वी, महातपस्वी, उदार, घोर, घोर गुणों वाले, घोर तप वाले, घोर ब्रह्मचर्य में वास करने वाले, शारीरिक संस्कार का त्याग करने वाले, संक्षिप्त और विपुल तेजो लेश्यों वाले, चौदह पूर्वो के ज्ञाता, चार ज्ञान के धनी और सर्वाक्षर सन्निपाती समस्त अक्षरों के ज्ञाता हैं। (2) व्याख्यान-श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं-इस काल और उस समय में इत्यादि। यद्यपि काल तो वही है, लेकिन समय का निर्धारण करने के लिए फिर काल का उल्लेख किया है। वह अवसर्पिणी नामक हीयमान काल था। और समय वह था जब भगवान् राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में पधारे हैं। परिषद् धर्मदेशना सुनकर गई है और भगवान् सुखासन पर विराजमान हैं। उसी समय की यह बात है। समय का उल्लेख करने का तात्पर्य है कि उचित समय पर ही प्रश्न करना चाहिए। जिससे प्रश्न करना है वह अगर किसी अन्य कार्य में व्यस्त श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १४३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy