________________
जब वह मरने लगा, तब उसने कहा-मेरे हाथ कफन से बाहर रखना। उसका जनाजा निकला। लोग सोचने लगे-'शाही उसूल के खिलाफ इस बादशाह के हाथ कफन से बाहर क्यों निकले हैं ?' चलते-चलते जब एक मैदान आया, तब शाही चोबदार एक टीले पर खड़ा होकर कहने लगा-'अपने बादशाह की अन्तिम बात सुनिये।' सब लोग उत्सुक होकर अपने मृत बादशाह की अन्तिम बात सुनने के लिए व्यग्र हो उठे। सन्नाटा छा गया। चोबदार ने कहा-आपके बादशाह कह गये हैं कि मैंने जीवित अवस्था में आप लोगों को अनेक उपदेश दिये हैं, लेकिन एक उपदेश देना बाकी रह गया था, जो अब देता हूं। मृत्यु के समय ही इस उपदेश का मुझे खयाल आया। मैंने हजारों-लाखों मनुष्यों के गले काट कर यह सल्तनत खड़ी की और काबू में रक्खी है। मुझे इस सल्तनत पर बड़ा नाज था और इसे मैं अपनी समझता था। लेकिन यह दिन आया। मेरे तमाम मन्सूबे मिट्टी में मिल गये। सारा ठाट यहीं रह गया और मैं चलने के लिए तैयार हूं। मेरी मुसाफिरी में साथ देने वाला कोई नहीं है। मुझे अकेले ही जाना होगा। मैं आया था-हाथ बांधकर और जा रहा हूं खुले हाथ। अर्थात् जो कुछ लाया था वह भी यहीं रह गया। मेरे साथ सिर्फ नेकी-बदी जाती है; शेष सारा वैभव यहीं रहा जाता है।
__ यह बात चाहे कोई भी क्यों न कहे, यह निश्चित है कि एक दिन जाना होगा। जब जाना निश्चित है तो समय रहते जाग कर जाने की तैयारी क्यों नहीं करते? साथ जाने वाली चीज के प्रति घोर उपेक्षा क्यों सेवन कर रहे हो? समय पर जागो और अपने हिताहित का विचार करो।
भगवान् महावीर को वन्दना करने के लिए जो परिषद् गई थी, उसे भगवान् ने धर्मदेशना दी। भगवान् ने लोकालोक का स्वरूप बतलाया और जिस धर्म से आत्मा मोक्ष का अधिकारी बनती है, उस धर्म का स्वरूप निरूपण किया। धर्मदेशना सुनकर और यथाशक्ति धर्म धारण करके सब लोग अपने-अपने स्थान को चले गये।
प्रकृत शास्त्र का मूल वक्ता कौन है? श्रोता कौन है? इस प्रकार गुरुपर्वक्रम दिखलाने के लिए शास्त्रकार कहते हैं:
गोतम स्वामी का वर्णन मूल-तेणं कालेणं, तेणं समएणं समण्स्स भगवओ महावीरस्स जेटे अन्तेवासी इंदभुई नाम अणगारे गोयमगुत्ते णं, सत्ततुस्सेहे, समचउरंससंठाणसंठिए.
वज्जरिसहनारायसंघयणे, १४२ श्री जवाहर किरणावली