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इसके उत्तर में राजर्षि नमि ने कहा
संसयंखलुसोमकुणई. जोमग्गेकुणइघरं। जत्थेवगन्तुमिच्छेजा, तत्थकुविज्जसासयं।।
उत्तराध्ययन 9 वां अ. मित्र! तुम्हारा कहना ठीक है, परन्तु जिसे यहां से परलोक जाने में संशय हो, वह भले यहां घर बनावे। जिसे परलोक जाने का विश्वास है-परलोक के घर के संबंध में संशय नहीं है वह यहां घर क्यों बनावें? वह वहीं अपना घर क्यों न बनावें? यहां थोड़े दिन रहना है तो घर बनाने की क्या आवश्यकता है? घर तो कहीं बनाना ही है, सो ऐसी जगह घर बनाना होगा जहां सदैव रह सकें-जिसे छोड़कर फिर भटकना न पड़े। राह चलते, रास्ते में घर बनाना बुद्धिमत्ता नहीं है।
मित्रों! एक अल्पकालीन जीवन के लिए घर बनाते हो तो जहां जाना है-सदा रहना है, वहां भी तो घर बना लो। साधु-सन्त और सतियां वहीं का घर बना रही हैं। आप भी वहां घर बनाने की अभिलाषा रखते हैं। मगर वह घर बनाने के लिए त्याग चाहिए। जीवन की आशा भी छोड़ देनी होगी। ऐसा त्यागी ही वहां घर बना सकता है। जब जाना निश्चित है और यह जानते हो कि शरीर नाशवान् और आत्मा अविनाशी है, तो अविनाशी के लिए अविनाशी घर क्यों नहीं बनाते?
सराय दुनिया है कूच की जां। हर एक को खोफ दम बदम है।।
रहा सिकन्दर यहां न दारा। न है करीदां यहां न जम है।। मुसाफिराना थके हो जागो। मुकाम फिरदो सही दुरम है।। सफर है दुशवार खुवाब कब तक। बहुत बड़ी मंजिले अदम है।। नसीम जागो कमर को बांधो।
उठावो बिस्तर के रात कम है।। संसार सराय है, इसमें स्थायी रूप से नहीं रह सकते। आप किसी मकान को ही सराय समझते हैं मगर वास्तव में सारा संसार ही सराय है। इसमें आज तक कोई स्थायी न रहा, न रहेगा। सिकन्दर एक बड़ा बादशाह हुआ है, जिसने थोड़े से हिन्दुस्तान के सिवाय और अनेको देश जीत लिये थे।
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १४१