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________________ भगवान् ने लोक का अस्तित्व इसलिए बतलाया है कि जगत् के जीव संसार से भयभीत और विरक्त हों। हे जीव! तू किस सम्पदा पर गर्व कर रहा एक बालक को उसका शिक्षक नक्शा बता रहा था। बालक का पिता भी वहीं बैठा था। बालक ने अपने पिता से कहा-पिताजी, देखिए इस नक्शे में कैसे-कैसे पदार्थ बताये गये हैं। लेकिन पिताजी, आप एक मिल के मालिक हैं। उस मिल ने बहुत-सी जगह रोक रक्खी है। वह मिल इस नक्शे में कहां है? मैंने बहुत खोजा, मगर अपना मिल नक्शे में कहीं नहीं मिला। आप बतलाइए वह मिल इसमें कहां है? बालक की बात सुनकर पिता ने कहा-भोले बच्चे! जिस नक्शे में इतना बड़ा देश बताया गया है उसमें अगर एक-एक मिल बताया जाये तो कैसे काम चलेगा? जिस नक्शे में कलकत्ता और बम्बई जैसे विशाल नगर भी एक-एक बिन्दु में बतलाये हैं, उसमें एक मिल का क्या पता चलेगा? बालक ने कहा-आप अपने मिल को बहुत बड़ा बतलाते थे, इसलिए मैंने पूछा। लेकिन इस देश के नक्शे में उसका क्या पता लगेगा? वह मिल चाहे जितना बड़ा हो मगर दुनिया में उसका कुछ भी स्थान नहीं है। ___ बालक की यह बात सुनकर पिता का गर्व शान्त हो गया। उसने सोचा-बालक की इस भोलेपन की बात में कितना महान् तथ्य छिपा हुआ है? मैं जिस पर गर्व करता हूं, वह दुनिया की दृष्टि में नगण्य है-तुच्छ है ! ज्ञानियों ने यह स्पष्ट कह दिया है कि लोक में ऐसा कोई प्रदेश नहीं है जहां यह जीव जन्म-मरण न कर चुका हो। इस जीव ने सम्पूर्ण लोक में अनन्त चक्कर काटे हैं, फिर भी यह जैसा का तैसा है। अतएव ममता त्याग कर समता धारण करना ही सार है। आप कहेंगे-हमें क्या करना चाहिए? इसका उत्तर यह है कि नक्शे में आपका घर न होने से आप नक्शा बनाने वाले पर दावा नहीं करते हैं। इतनी निस्पृहता एवं उदारता आप में है ही। इस निस्पृहता और उदारता को आगे बढ़ाओ। जैसे थोड़े से जीवन के लिए घर बनाते हो, वैसे ही अनन्त जीवन के घर का सोच करो। इन्द्र ने नमि राजर्षि से कहा था पासाएकारइत्ताणं, वद्धमाणगिहाणिय। वालग्गपोइयाओय, तओ गच्छसिखत्तिया।। उत्तराध्ययन 9 वां अ. अर्थात्-पहले आप ऐसा घर बनाइए, जिसे सारा संसार देखे, फिर चाहे दीक्षा ले लेना। १४० श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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