________________
गायन गावें तो मैं स्वर से स्वर मिलाऊं। दूसरी स्त्री ने कहा-मुझे प्यास लगी है, पानी पिलाइए'। तीसरी ने कहा 'मुझे भूख सता रही है, कहीं से कोई शिकार करो तो पेट की ज्वाला शान्त करूं' । चौथी बोली-'मैं बहुत थक गई हूं, बिस्तर कर दो तो मैं सो जाऊं।
- चारों स्त्रियों की बात एक दूसरी से विरुद्ध है। लेकिन उस पुरुष ने ऐसा उत्तर दिया, जिससे चारों का समाधान हो गया। चारों ही अपनी-अपनी बात का उत्तर पा गईं। जंगली ने चारों की बात के उत्तर में कहा-'सर नहीं।
प्राकृत भाषा में 'स्वर' के स्थान पर सर होता है। 'सर नहीं इससे यह मतलब निकला कि मैं गाऊं क्या, मेरा स्वर तो चलता ही नहीं है। 'सर नहीं इस उत्तर से पहली स्त्री यही समझी कि इनका कण्ठ नहीं चलता है, इसलिए यह गा नहीं सकते। दूसरी स्त्री ने जल मांगा था। 'सर नहीं इस उत्तर से वह यह समझी कि तालाब नहीं है, यह पानी कहां से लावें ! तीसरी ने शिकार करने के लिए कहा था। 'सर नहीं इस उत्तर से वह समझी कि जब सर अर्थात् बाण ही नहीं तो यह शिकार कैसे कर सकते हैं ? सर अवसर को भी कहते हैं। चौथी स्त्री ने बिस्तर करने की बात कही थी। वह इस उत्तर से यह समझी कि अभी बिस्तर करने का अवसर नहीं है-भला राह चलते सोने का अवसर कहां?
इस प्रकार पुरुष के एक ही उत्तर से चारों स्त्रियां सन्तुष्ट हो गई। अर्थात् उन्हें अपनी-अपनी बात का उत्तर मिल गया।
___ तात्पर्य यह है कि जब एक साधारण जंगली भी ऐसा उत्तर दे सकता है कि जिससे चारों स्त्रियां एक ही बात में अपना-अपना उत्तर पा सकती हैं तो जो समस्त विद्याओं के स्वामी हैं जिन्हें सम्पूर्ण विद्याएं कण्ठस्थ हैं, वे भगवान् यदि सर्वानुगामिनी भाषा बोलें तो क्या आश्चर्य की बात है ?
भगवान् ने जो धर्मदेशना दी, उसका भी संक्षिप्त वर्णन दिया गया है। उसका मूल यह है कि भगवान् ने अस्तिकाय की बात कही और कहा कि लोक भी है।
__'लोक' किसे कहते हैं? लोक-विलोकने धातु से लोक शब्द निष्पन्न हुआ है। 'लोक्यते इति लोकः' अर्थात् जो देखा जाये वह लोक है। यहां पर कहा जा सकता है कि सब को समान तो दिखता नहीं है, इस कारण लोक एक न रहकर अनेक हो जाएंगे। इसका उत्तर यह है कि केवलज्ञान से-निरावरण दृष्टि से जो देखा जाये वही लोक है। निरावरण दृष्टि भिन्न प्रकार की नहीं होती, अतएव लोक की एकरूपता में कोई बाधा नहीं आती।
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १३७