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अमुक शास्त्र सर्वज्ञ की वाणी है या नहीं? इस शंका का समाधान करने के लिए शास्त्र का लक्षण समझ लेना चाहिए। कहा है
आप्तोपज्ञमनुल्लंध्यमदृष्टेष्टविरोधकम् ।
शास्त्रोपकृत् सार्व शास्त्रं कापथघट्टनम् ।।
अर्थात् जो शास्त्र आप्त का कहा हुआ होता है उसका तर्क या युक्ति से खण्डन नहीं किया जा सकता । उसमें प्रत्यक्ष एवं अनुमान प्रमाण से विरोध नहीं होता। वह प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी होता है और अन्याय, असमानता, मिथ्यात्व आदि कुमार्ग का विरोधी होता है।
यह लक्षण जिसमें घटित होता हो अथवा जिस शास्त्र के पढ़ने सुनने से तप, क्षमा, अहिंसा आदि सद्गुणों के प्रति रुचि जागृत हो, उस शास्त्र के सम्बन्ध में समझना चाहिए कि यह सर्वज्ञ की वाणी है। उसे किसने लिपिबद्ध किया है, यह प्रश्न प्रधान नहीं है, प्रधान बात है उसमें पूर्वोक्त दैवी भावनाओं का होना।
परीक्षा दो प्रकार की होती है - आन्तरिक और बाह्य परीक्षा । यह बात समझाने के लिए एक दृष्टान्त उपयोगी होगा ।
कल्पना कीजिए, एक आदमी आपके सामने एक आम लाया। उस आम की परीक्षा दो प्रकार से हो सकती है। प्रथम यह कि आम कहां का है - किस बाग का है? किस वृक्ष का है? आदि। यह बाह्यपरीक्षा है । बाह्य परीक्षा में बड़ी उलझन होती है और फिर भी ठीक-ठीक निश्चय होना कठिन होता है। दूसरी अन्तरंग परीक्षा के लिए केवल इतना ही करना पर्याप्त है कि आम का छिलका उतार कर उसे चख लिया । चखने से तत्काल आम की मिठास या खटास का पता चल जाता है। लोक में कहावत प्रसिद्ध है - आम खाने से काम है, पेड़ गिनने से क्या काम ! वह आम चाहे बड़े और अच्छे बगीचे काही क्यों न हो, अगर खट्टा है तो काम में नहीं लिया जायेगा। तात्पर्य यह है कि अन्तरंग परीक्षा में बाह्य परीक्षा जैसी उलझन नहीं होती और अन्तरंग परीक्षा अचूक होती है ।
शास्त्र को आम के स्थान पर समझ लीजिए । शास्त्र चाहे किसी ने बनाया हो, चाहे किसी ने संग्रह किया हो, लेकिन इसके विषय में थोथी तर्कणा से काम न चलेगा।
इस प्रकार के तर्क-वितर्क चाहे जीवन भर किया करो, तब भी किसी निश्चय पर न पहुंच सकोगे । तर्क-वितर्क बाह्य परीक्षा है, जिससे उलझन श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ११६