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इतने विशाल भूखंड पर जो विजय प्राप्त करता है, इतने से जिसकी अखंड
और अप्रतिहत आज्ञा चलती है अर्थात् जो उसका एक मात्र अधिपति होता है उसे चतुरन्त कहते हैं। ऐसा चतुरन्त चक्रवर्ती होता है। चतुरन्त पद चक्रवर्ती का विशेषण है।
भगवान् ‘वर चाउरंत चक्कवट्टी हैं अर्थात् चक्रवर्तियों में प्रधान चक्रवर्ती हैं। वह सब चक्रवर्ती विजय प्राप्त करके पूर्वोक्त सीमा में चारों ओर अपनी आज्ञा फैला ले, और अपना सम्राज्य स्थापित कर ले, लेकिन उस चक्रवर्ती पर भी आज्ञा चलाने वाला कोई दूसरा चक्रवती हो तो वह दूसरा चक्रवर्ती प्रधान चक्रवर्ती कहलाएगा। वह चक्रवर्ती का भी चक्रवर्ती है।
भगवान् को यहां धर्म-चक्रवर्ती कहा है। भगवान् धर्म के चक्रवर्ती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान् के तत्व के सामने संसार का कोई भी माना हुआ तत्व नहीं ठहर सकता। जिस प्रकार सब राजा, चक्रवर्ती के अधीन होते हैं-चक्रवर्ती के विशाल साम्राज्य में ही सब राजाओं का राज्य अन्तर्गत हो जाता है, अन्य राजाओं का राज्य चक्रवर्ती के राज्य का ही एक अंश होता है, उसी प्रकार संसार के समस्त धर्म-तत्व भगवान के तत्व के नीचे आ गये हैं। भगवान् का अनेकान्त तत्व चक्रवर्ती के विशाल साम्राज्य के समान है और अन्य धर्म प्ररूपकों के तत्व एकान्त रूप होने के कारण राजाओं के राज्य के समान है। सभी एकान्त रूप धर्मतत्व, अनेकान्त के अन्तर्गत आ जाते हैं।
चक्रवर्ती लोभ से ग्रस्त होकर या साम्राज्यलिप्सा के कारण साम्राज्य की स्थापना नहीं करता। वह अधिक से अधिक भूमिभाग में एकरूपता एवं संगठन करने के उद्देश्य से साम्राज्य स्थापित करता है। चक्रवर्ती अपने राज्य में किसी को गुलाम नहीं रखना चाहता। वह चाहता है कि मेरे राज्य में कोई दुःखी न रहे और मेरे राज्य में अन्याय न हो। चक्रवर्ती अपने राज्य में सभी को स्थान देता है, मगर उन्हें अपनी छत्रछाया में रखना चाहता है।
भगवान् का स्याद्वाद सिद्धान्तों का चक्रवर्ती है। इस सिद्धान्त के महात्म्य से सभी प्रकार के विरोधों का अन्त आ जाता है। प्रतीत होने वाले विरोध को नष्ट कर देना स्याद्वाद का लक्षण है। कहा भी है-'विरोध्मथनं हि स्याद्वादः । अर्थात् विरोध का मथन कर देना ही स्याद्वाद है। इस प्रकार स्याद्वाद सिद्धान्त सब झगड़े मिटाकर शान्ति स्थापित करने का अमोघ साधन है। इसका आश्रय लेने पर सभी धर्मो के अनुयायी एक ही झंडे के नीचे आ जाते हैं। स्याद्वाद ने सभी सिद्धान्तों को यथायोग्य स्थान दिया है और ११४ श्री जवाहर किरणावली -