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________________ होते । भगवान् की शरण ग्रहण करने से जीव निर्वाण को प्राप्त करता है, जहां किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं हो सकता। यही नहीं, भगवान् की शरण में आने वाला जीव मोक्ष जाने से पहले भी संसार में रहता हुआ ही कष्टों से मुक्त हो जाता है । वह समताभाव के दिव्य यन्त्र में डालकर दुःख को भी सुख के रूप में पलटने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है। संसारी जन मोह एवं अज्ञान के कारण कुटुम्बी जनों को, धन- - दौलत को और सेना आदि को शरणभूत समझ लेते हैं। मगर सूर्य के प्रकाश की तरह यह स्पष्ट है कि वास्तव में इन सब वस्तुओं में शरण देने की शक्ति नहीं है। जब असातावेदनीय के तीव्र उदय से मनुष्य दुःख के कारण व्याकुल बन जाता तब कोई भी कुटुम्बी उसका त्राण नहीं कर सकता । काल रूपी सिंह जीवन रूपी हिरन पर जब झपटता है तब कोई रक्षण नहीं कर सकता। सेना और धन अगर रक्षक होते तो संसार के असंख्य भूतकालीन सम्राट और धनकुबेर इस पृथ्वी पर दिखाई देते। मगर आज उन में से किसी का अस्तित्व नहीं है । सभी मृत्यु का शिकार हो गये। विशाल सेना खड़ी रही और धन से परिपूर्ण खजाने पड़े रहे - किसी ने उनकी रक्षा नहीं की। जब संसार का कोई भी पदार्थ स्वयं ही सुरक्षित नहीं है तो वह किसी दूसरे की सुरक्षा कैसे कर सकता है ? संसार को त्राण देने की शक्ति केवल भगवान् में ही है। वही सच्चे शरणदाता हैं। धर्मोपदेशक - धर्मदाता भगवान् की शरण कैसे मिल सकती है ? इसका उत्तर भगवान् के 'धर्मोपदेशक' विशेषण में निहित है । भगवान् धर्मोपदेशक हैं धर्म का उपदेश देते हैं। धर्म दो प्रकार का है - श्रुतधर्म और चारित्रधर्म । भगवान् इन दोनों धर्मों का वास्तविक मर्म बतलाते हैं, अतएव वह धर्मोपदेशक हैं । अथवा - जिस वाणी को चारित्रधर्म प्राप्त नहीं है, उसे भगवान् के सदुपदेश से चारित्रधर्म की प्राप्ति होती है। इस कारण भगवान् धर्मोपदेशक हैं । भगवान् के परम अनुग्रह से चारित्रधर्म होता है | चारित्र - धर्म की प्राप्ति कराने के कारण भगवान् परम उपकारी हैं। ११२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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