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________________ वे दैत्यारि कहलाए। इस प्रकार युद्ध करने और मारने की बात तो उनके चरित्र में लिखी गई है, मगर यह नहीं लिखा कि उन्होंने मारने के उद्देश्य से आने वाले को भी अभयदान दिया। यह विशेषता तो केवल तीर्थंकरों में ही है। विष्णु दैत्यारि और त्रिशूलधारी कहलाते हैं, लेकिन तीर्थंकरों जैसी दया भावना वहां कहाँ है ? तीर्थंकरों के चरित्र दया के अनुपम आदर्श हैं और अब भी संसार में दया का जो गुण विद्यमान है वह उन्हीं परम पुरुषों के जीवन की थोड़ी बहुत वसीयत है। ____ कहा जा सकता है कि शिव, विष्णु आदि के संबंध में हिंसात्मक जो वर्णन है वह सब आलंकारिक है। वास्तव में उन्होंने आन्तरिक दैत्यों से अर्थात् काम, क्रोध, मद, मोह आदि से युद्ध किया था और उन्हीं को मारा था। अगर यह कथन सत्य मान लिया जाये तो उनमें और तीर्थंकरों में अन्तर ही क्या रहा? हम तो उसी के प्रशंसक हैं-उसी के उपासक हैं, जिसमें तीर्थंकरों की सी दया है। जिसमें तीर्थंकरों की दया है वही तीर्थंकर है। नाम किसी का कुछ भी हो, जिसमें तीर्थंकर भगवान् के समस्त गुण विद्यमान हों, वह हमारा उपास्य देव है। कहा भी है यत्र तत्र समये यथा तथा, योऽसि सोऽज्ञसभिधया यया तया। वीतदोषकलुषः स चेद् भवान्, एक एव भगवान् नमोऽस्तु ते।। अर्थात् किसी भी परम्परा में, किसी भी नाम से, किसी भी रूप में आप क्यों न हों, मगर दोषों की कलुषता से रहित हैं-पूर्ण वीतराग हैं, तो सभी जगह एक हैं। ऐसे हे भगवान्! आपको मेरा प्रणाम है। नाम पूजनीय नहीं होता, वेष वन्दनीय नहीं होता, पूजा-वन्दना गुणों की होती है और होनी चाहिए। अगर हरि, हर आदि की दया भावना अर्हन्तों जैसी ही मानी जाये तो वह भी अर्हन्त ही हो जाएंगे। मगर ऐसा मानने में जो बाधा उपस्थित होती है वह यही है कि उनके संबंध में पुराणों में लिखी हुई कथाएं मिथ्या माननी होंगी, क्योंकि अनेक कथाओं का समन्वय इस दया भावना से नहीं किया जा सकता। भगवान् अपना उपकार करने वाले पर भी जो लोकोत्तर दया दिखलाते हैं वह असदृश है, असाधारण है, उसकी तुलना भगवान् की ही दया से की जा सकती है, किसी और की दया से नहीं। भगवान् की दया से प्राणी तात्कालिक निर्भयता ही प्राप्त नहीं करता, मगर सदा के लिए अभय बन जाता है। इसी कारण 'भगवान्' अभयदए हैं। श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १०५
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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