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________________ संसार में सूर्य से बढ़कर प्रकाश देने वाला कोई पदार्थ नहीं है। इसी कारण भगवान् को सूर्य की उपमा देनी पड़ती है। अभयदएसभी अपने-अपने अभीष्ट देव की प्रशंसा करते हैं। जैसे तीर्थंकर भगवान् को लोक-प्रद्योतकर मानते हैं उसी प्रकार हरि, हर-ब्रह्मा आदि के अनुयायी उन्हें भी लोक-प्रद्योतकर मानते हैं। सूर्य भी लोक में उद्योत करने वाला है। फिर हरि, हर ब्रह्मा और सूर्य से भगवान् में क्या विशेषता है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि भक्तों के विशेषण लगा देने से ही भगवान् में विशेषता नहीं आ जाती। शाब्दिक विशेषण से ही वस्तु पलट नहीं सकती। भगवान् में हरि, हर आदि देवताओं से जो विशेषता है, वह भगवान् के सिद्धान्तों में स्वतः प्रकट हो जाती है। भगवान् के सिद्धान्तों में क्या विशेषता है, यह देखना चाहिए। यही बात दिखाने के लिए भगवान् को 'अभयदए' विशेषण लगाया गया है। भगवान् की एक विशेषता यह है कि वह अभयदाता हैं। भगवान् के प्राण-हरण करने के उद्देश्य से आने वाले पर भी भगवान् की अपूर्व अनुकम्पा अखण्ड करुणा रही। मारने वाला कषाय के भयंकर ताप से तप्त होता था, तब भगवान् ने अपनी अद्भुत दया के शीतल प्रवाह से उसे शान्ति पहुंचाने का ही प्रयत्न किया। चण्डकौशिक क्रोध की लप-लपाती ज्वालाओं में झुलस रहा था और भगवान् को भी झुलसाना चाहता था परन्तु भगवान् के अन्तःकरण से करुणा के नीरकण ऐसे निकले कि चण्डकौशिक का भी अन्तःकरण शान्त हो गया और उसे स्थायी शान्ति का पथ मिल गया। भगवान् ने अनुकम्पा को अपने जीवन में मूर्त स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने अपनी साधना द्वारा दया को जीवित किया और जनता को अभयदान देने का उपदेश दिया, जिससे संसार से भय मिट कर अभय का साम्राज्य छा जावे। 'सव्वेसु दाणेसु अभयप्पयाणं' अर्थात् अभयदान सभी दानों में श्रेष्ठ है, इस सत्य की भगवान् ने घोषणा की। यह भगवान् की विशेषता है। कदाचित् सूर्य के साथ 'लोकप्रद्योतकर' विशेषण दिया जाये, तब भी सूर्य अभयदान नहीं दे सकता। इसी प्रकार हरि, हर आदि के जो चरित्र उनके भक्तों के लिखे हुए उपलब्ध हैं, उनसे यह प्रकट होता है कि हरि-हर आदि ने बड़े-बड़े भीषण युद्ध कर के दैत्यों को मारा और १०४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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