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________________ आओ संस्कृत सीखें वत्सा = पुत्री ( स्त्री लिंग) | कथंचित् = कभी अनागस् = अपराध रहित (विशेषण) नु = वितर्क अर्थ में आर्त्त = पीड़ित व्यवसायिन् = व्यापारी क्षम = समर्थ अये = हे इव तरह = (अव्यय) (विशेषण) संप्रति = अभी (विशेषण) आगस् = अपराध (विशेषण) कुमुद = चंद्रविकासी कमल (नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) (अव्यय) पूरण = भरना (अव्यय) मानस = मन संस्कृत में अनुवाद करो : 1. मुनि परिषह सहन करते हैं । (सह ) 2. सूर्य उदय होता है (उद्+इ) और कमल मुर्झाते हैं । (म्लै) 3. व्यवसायी लोग जल्दबाजी करते हैं। (त्वर्) 4. बाघ भी जलती अग्नि को देख भाग जाते हैं। (परा + अम् ) 5. अपनी प्रशंसा न करें । ( श्लाघ्) 6. सूर्य के ताप द्वारा तालाब का पानी उबलता हैं। (उद् + क्वथ्) तुम्हारा शरीर चमकता हैं। (वि + भ्राज्) 7. 8. कर्म के साथ स्पर्धा करनेवाले (स्पर्धा) वर्धमान स्वामी को नमस्कार हो । हिन्दी में अनुवाद करो : धर्मः त्राणं च शरणं च । 1. 2. यमुना गङ्गां सङ्गच्छति' । 3. विजयस्व राजन् ! 4. वत्स ! किमीहसे ? 5. विरम त्वमिदानीमकार्यात् । (अव्यय) (अव्यय) 6. वत्से ! अनुगच्छ माम् । बाल: स्तनं धयति । 7. 8. प्रवर्त्ततां प्रकृति - हिताय पार्थिवः । 9. वत्स ! रथमारुह्य ते राजधानीं प्रतिष्ठस्व । 10. मातः ! एष कोऽपि पुरुषो मां पुत्र इत्यालिङ्गति ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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