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आओ संस्कृत सीखें
पहले गण के धातु - अर्थ अर्ज = पाना (परस्मैपदी) | प्र+शंस् = प्रशंसा करना (परस्मैपदी) अह = योग्य होना (परस्मैपदी) | शस् = हिंसा करना (परस्मैपदी) इ = जाना
(परस्मैपदी) | आ+शंस् =आशंसा करना(आत्मनेपदी) उद्+इ = उदय पाना (परस्मैपदी) | ईह् = इच्छा करना (आत्मनेपदी) कृष् = खींचना (परस्मैपदी) | जृम्भ = प्रगट होना (आत्मनेपदी) क्वथ् = उबलना (परस्मैपदी) | त्रै = रक्षण करना (आत्मनेपदी) गम् = जाना (परस्मैपदी)| त्वर् = जल्दबाजी करना (आत्मनेपदी) सम् + गम् = मिलना (परस्मैपदी) | भ्राज् = शोभा देना (आत्मनेपदी) अधि + गम् = जानना (परस्मैपदी)| भ्रास् = शोभा देना (आत्मनेपदी) ज्वल् = जलना (परस्मैपदी) | लम्ब् = लटकना (आत्मनेपदी) . धे = दौड़ना (परस्मैपदी) | लोक् = देखना (आत्मनेपदी) भू = होना
(परस्मैपदी) | शङ् = शंका करना (आत्मनेपदी) प्रादुस्+भू = प्रकट होना (परस्मैपदी) | श्लाघ् = प्रशंसा करना (आत्मनेपदी) आविस्+भू-खुल्ला होना (परस्मैपदी) | सह् = सहन करना (आत्मनेपदी) भ्रम् = भटकना (परस्मैपदी) | स्पन्द् = फरकना (आत्मनेपदी) म्लै = मुरझाना (परस्मैपदी) स्पर्ध = स्पर्धा करना (आत्मनेपदी) लिङ्ग् = आलिंगन करना (परस्मैपदी) | बुध् = बोध करना (उभयपदी) लुण्ट् = लूटना (परस्मैपदी) | लष् = अभिलाषा करना (उभयपदी) शंस् = कहना (परस्मैपदी)।
शब्दार्थ अम्भोधि = समुद्र (पुलिंग) । भव = संसार
(पुलिंग) ज्वलन = आग (पुलिंग) महीप = राजा (पुलिंग) परिषह = कष्ट (पुलिंग) | वत्स = पुत्र
(पुलिंग) पर्यंत = किनारा (पुलिंग) स्तन = स्तन
(पुलिंग) पार्थिव = राजा (पुलिंग) | प्रकृति = स्वभाव (स्त्री लिंग) पुरुषकार = पुरुषार्थ (पुलिंग) | राजधानी = मुख्य नगर (स्त्री लिंग)