________________
(७४)
मूलतमा मायनर'
rrrrrrrrrrrrrrrrrmmmmmmmm.ww.xn.mmun.arma ___ अर्थ-अने उत्कृष्टपणे चव हजार आहारक शरीर होय छे. ए बगैरनुं अन्तर ( आरं) जघन्यथी एक समयनुं अने उत्कृ
यी छ मासयूँ कहेलुं छे. २१. इत्तो असंख वेउन्विआणि हंति सरीरगाणि जए । तत्तो असंखगुणिआ ओरालिअदेहसंघाया ॥ २२ ॥
अर्थ-ए आहारक शरीरोथी वैकिय शरीरो असंख्य गुणां छे. अने वैक्रिय शरीरोथी औदारिक शरीग्ना समूहो असंख्य गुणा छे. + २२. तत्तो तेअस-कम्मण हंति सरीर णि णंतगुणिआणि । वित्थरभेअविआरो अव्यो सुअसमुद्दाओ ॥ २३ ॥ ___ अर्थ-ते औदारिक शरीरोयी तैजस अने कार्पण गरो प्रत्येक जीवने एकेक जुदा जुदा होनाथी अनंता छे. आ नवे भेदोनो विस्तारथी विचार श्रुत रूपी समुद्रथी जाणी लेवो. (अर्थात् अहीं संक्षेपे कसो छ, ) २३ __प्रथम शरीरनो विचार कहो, हवे वीजो विचार कहे छे:नरसंखायगमणं रयणाए भवण जाव इसाणे। ताय तणु जहन्नेणं परिमाणं अंगुलपटुत्तं ॥ २४ ॥
अर्थ-संख्याता वर्षना आयुष्यवाळा जे गर्भज मनुष्यो रत्नप्रभा नामनी पहेली नरके, भवनपतिमां, व्यन्तरमा ज्योतिपिमा अने सौधर्म तथा इशान देवलोकमां जाय छे, तेओना शरी
तुं प्रमाण जघन्ययी पण अंगुळ पृथकत्व (बेथी नव आंगळy) होय के. २४.
+ अनंत निगोद बीबोतुं शरीर औदारिक पकन रोवायी बोररिक शरीर म्याता के