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श्री विधार पञ्चाशिका. (७) ताण ठिई जहन्नेणं मासपहत्तं ति होइ नायव्वा । उकास पुश्वकोडी जेठतणु पंचधणुहसयं ॥ २५ ॥ ___ अर्थ--अने तेनी स्थिति एटले आयुष्य जघन्यथी पण मास पृथक्व ( बेथी नव मास ) नुं होय छे, एम जाणवू, तथा तेमनी उत्कृष्ट स्थिांतनुं मान करोड पूर्वनुं छे, अने तेओनुं उत्कृष्ट शरीरनुं प्रमाण पांचसो धनुपर्नु छे. २५ सकरसणाइएसु मणुआणं तणु जहन्नओ होइ । रणिपद्धत्तं अं उक्कोसं पुश्वमणि तु ॥२६॥
अर्थ--जे मनुष्यानुं गमन शर्करा पृथ्वीथी भारंभीने छए नरकमां तथा सनत्कुमार देवलोकथी आरंभीने अनुत्तर विमान पर्य। होय छे, ते मनुष्योना शरीरनुं मान जघन्यथी पण बेथी नव रत्नि ( हाथ ) नुं अने उत्कृष्टथी पूर्वे कहेलं छे एटलं एटले पांचसो धनुपर्नु होय छे. २६. ताण ठिई जहन्नणं वासपहत्तं तु होइ णायदा । उकोसा पुवं पिव आगममाणस्स एमेव ॥ २७ ॥ ... अर्थ-तेमनी स्थिति (आयु) जघन्ये बेथी नव वर्षनी होय छे, अने उत्कृष्ट पूर्वे कहेलो एटले एक करोड पूर्वनी होय छे. आगमनने माटे पण एज प्रकार छे. शी रीते ? ते विवरीने कहे छ:रत्नप्रभा पृथ्वीथी नीकळीने जेओ गर्भज मनुष्यपणे उत्पन्न याय थे, तमनी स्थिति जघन्य बेथी नव मासनी होय छे. अर्थात् तेंटला काळनी अंदर तेश्रो काळ धर्म पामा नथी, अने तेओना शरीरर्नु जघन्य प्रमाण बेथी नव अंगुब्नु होय छे. तथा तेमनी उत्कृष्ट स्थिति एक करोड पूर्वनी होय छे. अने तेमना शगैरनुं मान उत्कृष्थी पांचमो धनुपर्नु होय छे. जेओ शर्करा प्रभादिक पांच नरक भूमिः मांधी आवर्याने गर्भज मनुष्यपणे उत्पन्न याय छे, तेओनी जघन्य