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सिद्धी- मोक्ष सिणायगस्त - स्नातकने एए-ए निर्ग्रथो
अविराहगा - अवि
पंच निधी प्रकरणे.
नोक
ताय हीसया - प्रायfश
राधक
पुण- बळी हवा - होय
लोगपाला-लोकपाल
इंदा-इंद्र सामाणिय-सामा
वा-अथवा
अर्थ:- स्नातक मोक्षेज जाय वळी ए अविराधक थका इंद्र, सामानिक देव, त्रायत्रिंश देव अथवा लोकपाल थाय. ५८.
विवेचन:- छेल्ला स्नातक मोक्षेज जाय, कारण के तेरमे चौद गुणठाणे स्नातक होय. अने केवली तो अवश्य मोक्षेज जाय. स्नातक सिवायना बाकीना चार निर्ग्रन्थो अविराधक थका इंद्र, सामानिक देव, त्रयत्रिंश देव अथवा लोकपाल थाय. ए महार्धिक देवो जाणवा. ५८.
पलिय पुहुत्तं धोवा, देवठिइ अंतदुअ विवज्जाणं । उक्कोसा सव्वेसिं, जा जंमि होइ सुरलोए || ५९ || दा० १३
पलियपुहुत्तं - पल्यो
पम पृथक्त्व
थोवा-थोडा, जगन्यथा देवfor - देवस्थिति
अंतदुअ-छेला बे
विवाणं वर्जीने उक्कोसा - उत्कृष्टथी सव्वेसिं-स
जा- जेटलुं
जंमि जेमां
होह होय
सुरलोए-देवलोकमां
अर्थ:- छेल्ला बेने वर्जीने जघन्यथी पल्योपम पृथकत्व जघ न्य स्थिति होय. उत्कृष्टथी सर्वेनी जे देवलोके जेटली होय तेटली५९
विवेचनः निग्रन्थ तथा स्नातक ए वे वर्जीने बाकीना त्रण एटले पुलाक वकुश तथा कुशील देवलोकमां उपजे त्यां जघन्यथी पल्योपम पृथक्त्व एटले बेथी नव पल्योपमनी स्थिति जाणवी. अने उत्कृष्टथी जे देवलोकमां पूर्वे उपपात को तेनी उत्कृष्ट स्थिति ली स्थिति जाणवी. ५९