SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भणइ-कहे छे च्छो-च्छवी शरीरं- शरीर जोगनि रोहेण-योग निरोधथी मूल तथा भाषांतर. तस्स - तेना अभावा-अभावथी अच्छवित्ति-अच्छवी 1. ( २५९ ) खेअ - खेद अभावेण - अभावथो अच्छविओ -अच्छवी स्नातक अहवा-अथवा स्नातक अर्थः- शरीरने च्छवी कहे छे. योग निरोधथी तेना अभाव होवाथी अच्छवी स्नातक अथवा खेदना अभावथी अच्छवी कहीए. ३४. अम्ममो-अकमीश निस्सेस- समस्त जोग-योग विवेचनः - हवे अच्छवी स्नातकनो अर्थ कहे छे:-च्छवि एटले शरीर तेनो अभाव ते अच्छवि योग निरोध करेल होवाथी शरीरनो अभाव को अथवा खेअं एटले खेद सहित जीव व्यापार ते जेने नथी तेने प्राकृत बोलीए अच्छवी कहीए. अथवा घाती कर्मनो क्षय कर्यो ते फरी नथी करवो माटे अच्छवी कहीए. ३४. अस्सबलो णइयारो, निठियकम्मो अहो अकमंसो । निस्से सजोगरोहे, अपरिस्सावी अकिरियता ॥ ३५ ॥ अस्सबलो - असबल न- नथी अपरिस्तावी-अ -अपरिश्रावी अकिरियत्ता-अक्रिय अइयारो अतीचार निकम्मो निष्ठितकर्म रोहे-रुंध्ये थके पणार अर्थः- अवीचार रहित ते असबल, निष्टितकर्मेश ते अकमाश समस्त जोग रुंध्ये थके अक्रियापणावडे अपरिश्रावी. ३५. विवेचनः - स्नातकना पहेला भेद अच्छवीनो अर्थ कही. हवे बीजा भेदोना अर्थ कहे छे: २ अस्सबल स्नातक - अतिचार रुप मेल जेने विषे न होय ते. ३ अकर्मी स्नातक-कर्मश कहेतां घाती कर्म जेनां नाश पाया के वे.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy