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२२६. श्वन्नुक्षन्यूषन्प्ली. उणा. १।१५७, २७. यतोऽयं रश्मिभिः सर्वतः आविष्टो भवति- नि.द.तृ. १२।२, २८. यस्माद्विष्टमिदं विश्वं तस्य शक्त्या महात्मनः। तस्मात् प्रोच्यते विष्णुर्विशधातोः प्रवेशनात्।। -विष्णु पुराण- ३।२।४५, २९. विषे: किच्च-उण ३।३९, ३०. पिंशनीया दूरी करणीया ध्वंसनीया- नि.दु.वृ. १२।२, ३१. दि.इटीमोलोजीज ऑफ यास्क पू.११४,३२. उणा. १२७,३३.नि. १२।३, ३४. नि. १२॥३,३५. केश इज नाईदर फोनेटीक्ली नार सेमनटीकली रीलेटेड टू काश् दी इटीमोलौजीज आफ यास्क पृ.८,३६. हलायुध-पृ. २४५, ३७. अथाप्येते इतरेज्योतिषी केशिनी उच्यते। धूमेनाग्नीरजसा च मध्यमः नि. १२।३, ३८. विषं तु गरले तोये - विश्व को. १७१।२,३९. इगुपधज्ञाप्रीकिर:क:अष्टा.३।१।१३५, ४०. वृषाकपिः पुमान् कृष्णे शंकरे जात वेदसि- मेदि.१०४।३०, ४१. अंहिकम्प्योर्न लोपश्च- उणा. ४|११४,४२. पलस्य मांसस्य अशनाच्च पलाशम- नि.द.७.१२॥३,४३. कर्मण्यण- अष्टा.३।२।१,४४. तदेतच्चतुष्पाद ब्रह्म। अग्निः पादो, वायः पाद, आदित्य: पादो दिश: पाद: छा. उप.३।१८२, ४५. यतः स कायं विपुनाति विदारयति ततः पवि:-नि.दु.वृ. १२।३, ४६. अच इ:-उणा. ४।१३९, ४७. तन्नेहास्ति यदयं न मनुते-नि.दु.वृ. १२॥३, ४८. सुस्वस्निभूहि- उणा. १/१०,४९.नि.१२।४,५०.नि. ७।४,५१.दुस्थानो देवगण इति नैरुक्ताः नि १२।४, ५२- पूर्वं देवयुगमित्याख्यानम्- नि. १२१४, ५३. अग्निर्वसुभिर्वासवइतिसमाख्या तस्मान्पृथिवी स्थाना- नि. १२।४, ५४. इन्द्रोवसुभिर्वासव इति समाख्या तस्मान्मध्यस्थाना:- नि. १२।४,५५.धरो धुवश्च सोमश्च अहश्चैवानिलोऽनल: प्रत्यूषश्च प्रभासश्च- वसवोऽष्टाविति स्मृता:- वाच. पृ. ४८६३, ५६. शृस्वृस्निहि. उणा. १।१०, ५७. वाच. भाग ५ पृ. ३७३६, ५८. व्रश्चभ्रस्ज. - अष्टा. ८।२।३६.
(छ) निरुक्तके त्रयोदश अध्यायके निर्वचनोंका मूल्यांकन ।
निरुक्तके त्रयोदश अध्यायके पूर्व ही द्वादश अध्याय तक निघण्टुके शब्दों के निर्वचन हो गये हैं। त्रयोदश अध्यायमें यास्कका लक्ष्य कुछ मन्त्रोंके ईश्वरपरक अर्थको दिखलाना है इस प्रकारके अर्थ प्रदर्शनको अतिस्तुति कहा गया है। इस प्रसंगमें भी कुछ पदोंके निर्वचन हुए हैं। इस अध्यायके कुल निर्वचनोंकी संख्या सात हैं। सभी निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टि से संगत है। निर्वचनोंका पृथक् मूल्यांकन द्रष्टव्य
है :
(१) नैतोश :- यह एक संज्ञापद है। निरुक्त के अनुसार- नितोशस्यापत्यं नैतोशं' अर्थात् नितोश के अपत्य को नैतोश कहा जायगा। यह तद्धितान्त
४८८:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क