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________________ शब्द है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। नितोश शत्रुहन्ता राजा का वाचक है। __(२) गुहा :- यह कन्दरा, गुफाका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-गूहते:१ अर्थात् यह शब्द गूह संवरणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि गुफा सम्वृत होता है गूह-गुहा-गुफा। यास्क के समय में गृह दीर्घोपध होगा लेकिन ग्रह ह्रस्वोपध ही मूल होना चाहिए। गृह इसी मुह का ही विकसित रूप है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार गुह सम्बरणे धातुसे क:२+ टाप् प्रत्यय कर गुहा शब्द बनाया जा सकता है। (३) तुरीयम् :- यह चार का वाचक है। निरुक्तके अनुसार- त्वरते: अर्थात् यह शब्द त्विरा संम्रमे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि तीनके बाद शीघ्र ही उसे कहा जाता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार चतुर्णां पूरण: चतुर + छ -चतुरीय आद्यक्षर लोप कर तुरीयम् शब्द निष्पन्न होगा। डा. वर्मा इसे धातुज सिद्धान्त पर आधारित मानते हैं। (४) अक्षरम् :- यह वर्णका वाचक है। निरुक्त के अनुसार (१) न क्षरति' अर्थात् यह शब्द क्षर् संचलने धातुके योगसे निष्पन्न होता है न + क्षर् +अच् अक्षर। क्योंकि वह नष्ट नहीं होता है। (२) नक्षीयते' अर्थात् वह क्षीण नहीं होता इसके अनुसार इस शब्दमें न + क्षि क्षये धातुका योग है न-अ + क्षि +डरन् = अक्षरम्। (३) वाक्षयो भवति अर्थात् वह अक्षय होता है उसमें कभी क्षय नहीं होता। इसके अनुसार इस शब्दमें अ + क्षि धातुका योग है। (४) वाचोऽक्ष इतिवा' अर्थात् वह वाणी का अक्ष धूरा होता है। वाणी का आधार अक्षर ही होता है। इस निर्वचनके अनुसार इस शब्दमें अक्ष +र प्रत्यय का योग है। आचार्य शाकपूणि: ओम् वाक् को अक्षर मानते हैं। जो ब्रह्म स्वरूप है। ब्राह्मण ग्रन्थसे भी इसी ओम् अक्षर ब्रह्म की पुष्टि होती है। शाकपूणिके पुत्रका कहना है कि अक्षर आदित्य है तथा आदित्यको ऋक् कहते हैं। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है। अक्ष से अक्षर का निर्वचन सादृश्य पर आधारित है। अक्ष,धरा पर जिस प्रकार शकट या स्थ आश्रित रहता है उसी प्रकार ओम् अक्षर ब्रह्म में ही सभी वेद शास्त्र आश्रित हैं। ओम की चारो ओर सारी ज्ञान प्रक्रिया अवस्थित है। इस चक्कर काटने (स्थ के चक्कर) की समानता के आधार पर अक्षर बना। वाणी का अक्ष तो अक्षर है ही। अक्षर के बिना वाणीकी स्थिति रह ही नहीं सकती। शब्दोंके मूलमें अक्षर ४८९: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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