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________________ संसार व्याप्त है। व्याकरणके अनुसार इसे वस् निवासे + उ: प्रत्यय कर वसु: वसवः शब्द बनाया जा सकता है।५६ (३६) स्वर्काः :- इसका अर्थ होता है- सूर्य रश्मियां! निरुक्तके अनुसार स्वर्काः स्वंचना इतिवा४९ अर्थात् सुन्दरगमन करने वाली या सुन्दर गति से युक्त। इसके अनुसार इस शब्दमें सु + अंच गतौ धातुका योग है। स्वर्चना इतिवा४९ सुन्दर स्तुति वाले। इसके अनुसार सु+ अर्च् धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न हुआ है। स्वर्चिषइतिवा४९ वह सुन्दर दीप्तिसे युक्त है। इसके अनुसार इस शब्दमें सु + अर्छ धातुका योग है। द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं। (३७) देवपल्य :- इसका अर्थ होता है देवपत्नियां। निरुक्तके अनुसार देवानां पल्य:४९ इस निर्वचनका मात्र सामासिक विग्रह प्रस्तुत किया गया है। यह सामासिक आधार रखता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार देवः पतिर्यस्याः सा देवपत्नी देव-पति-नुक् ङीष् = देवपत्नी देवपत्न्यः शब्द बनाया जा सकता है।५७ (३८) राट् :- यह राजाका वाचक है। निरुक्तके अनुसार राट् राजते:४९ यह शब्द राजृ दीप्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि वह दीप्तिमान् होता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार राजृ दीप्तौ + क्विप् = राट् शब्द • बनाया जा सकता है।५८ . . .: सन्दर्भ संकेत :१. नि. १२१, २.. अतइनिठनौ-अष्टा. ५।२।११५, ३. हलायुध-पृ. १४२, ४. नि. २।५ (द्र.), ५. उष: किच्च-उणा. ४।२३७ इत्यसिः , ६. सूर्या देवतायां चाप वाच्यः- अ. ४।१।४८ का वार्तिक १०७, ७. अ.को. २।४।२९, ८. शुक तुण्डाभपुष्पत्वात्- (रामा.) अ.को २।४।२९, ९. नि. दु.वृ. १२।१, १०. उणा. ४।११८, ११. सूर्योदयकालं प्रतिगततमा एषा सूर्या एवं अवश्याय कणानां वर्षणात् कम्पनाच्च वृषायी भवति- नि.दु.वृ. १२।१, १२. स्नुव्रश्चिकृत्युषिभ्यः कित- उणा. ३१६६, १३. वाच. पृ.५२४८, १४. नि. १२१२, १५.शु.यज. ४०८, १६. अच इ:- उणा. ४।१३९, १७. हलायुध-पृ. ५६६, १८. अ.को. २।६।४, १९. भाग.: ३२३४३, २०. नि.दु.वृ. १२।२, २१. नि,दु.वृ. १२।२, २२. कृके वच: कुश्च- उणा. १६, २३. त्वरया तूर्णगतिर्यमः नि. १२१२, २४. वायुना ह्ययं सुष्टु हर्यते तस्मात् सूर्यः - नि. दु.वृ. १२।२, २५. राजसूय सूर्यमृषोद्येति- (क्यप्) अष्टा. ३।१।११४, ४८७:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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