SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इन अर्थोंकी संगति देव शब्द में प्राय: देखी जाती है।४० (२१) होता :- इसका अर्थ होता है बुलाने वाला। निरुक्तके अनुसार होतारं हातारम्३२ अर्थात् होता ह्वाता होता है। आवाहन करने वाला हाता या होता कहलाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें हवेञ् स्पर्धायां शब्दे च धातुका योग है। यास्क उक्त प्रसंग में आचार्य और्णवाभके मतका भी उल्लेख करते हैं- जुहोतेहोतेत्यौर्णवाम:३२ अर्थात् होता शब्द में हु दानादनयोः धातुका योग है। इसके अनुसार इसका अर्थ होता है यज्ञ करने वाला, हवन करने वाला या खाने वाला या देने वाला। यास्कका निर्वचनात्मक संकेत ध्वन्यात्मक औदासिन्य से युक्त है। अर्थात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त है।४१ और्णवाभ का निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे सर्वथा उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार हु धातुसे तृच् प्रत्यय कर होतृ-होता शब्द बनाया जा सकता है। डा.वर्मा इसे लोकप्रिय निर्वचन मानते हैं। हवेञ् धातुसे इसकी व्युत्पत्ति अपेक्षाकृत अर्वाचीन है। तैतिरीय ब्राह्मण तथा गोपथ ब्राह्मण में भी इसका निर्वचन हवे धातुसे ही माना गया है।४३ (२२) समनम् :- इसका अर्थ होता है समान मन वाला। निरुक्तके अनुसार समनं समननाद्वा२२ अर्थात् समान मनन करनेके कारण समनम् कहलाया। इसके अनुसार इस शब्दमें सम् + मन् मनने धातुका या सम् + अन् धातुका योग है। स समान का वाचक है तथा मन् धातु। सम्माननाद्वा३२ अर्थात् समान मान करने के कारण समनम् कहलाया। इसके अनुसार इस शब्दमें सम्+मान् पूजायां धातुका योग है-सम्-मान्-सम्मान-समनम्। दुर्गाचार्य ने समनसः का अर्थ समानमनसः किया है।४४ प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है।अन्तिमनिर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। (२३) नसति :- इसका अर्थ होता है प्राप्त करना। निरुक्तके अनुसार -नसतिराप्नोतिकर्मा वा अर्थात् नसतिः शब्द प्राप्त कर्मा है। यह नस् प्राप्तौ धातुके योग से निष्पन्न होता है। नमतिकर्मा वार अर्थात् नसति शब्द नमन अर्थवाला नस् धातुके योग से निष्पन्न होता है। इन निर्वचनों में मात्र अर्थ ही स्पष्ट किया गया है धातुका स्पष्ट निर्देश नहीं प्राप्त होता। नस् धातुसे इसकी व्युत्पत्ति मानने में ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। (२४) दिव्य :- इसका अर्थ होता है धु लोकवासी। निरुक्तके अनुसार- दिव्यो दिविज:३२ अर्थात् दिव्य शब्द दिविजः का वाचक है। दिव् से दिव्य शब्द को निष्पन्न ४०४:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy