________________
दिविज : ३२ अर्थात् दिव्य शब्द दिविजः का वाचक है । दिव् से दिव्य शब्द को निष्पन्न माना गया है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। दिव्य शब्दमें य कृदन्त प्रत्यय है जो निवास अर्थ का द्योतक है। व्याकरणके अनुसार दिवि भवम् - दिव्यम् दिव् दिविज : ३२ अर्थात् दिव्य शब्द दिविजः का वाचक है । दिव् से दिव्य शब्द को निष्पन्न माना गया है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। दिव्य शब्दमें य कृदन्त प्रत्यय है जो निवास अर्थ का द्योतक है | व्याकरणके अनुसार दिवि भवम् दिव्यम् दिव् + यत् कर बनाया जा सकता है। (२५) हर्यति :- इसका अर्थ होता है बार-बार प्राप्त करने की इच्छा करता है। निरुक्तके अनुसार- हर्यति: प्रेप्साकर्मा विहर्यतीति अर्थात् बार-बार प्राप्त करने की अभिलाषा करना अर्थ वाले हर्य्यं धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है- हर्य + तिपहर्यति। इसके अर्थमें यास्क विहर्य्यति ४५ या अभिहर्यति४६ देते हैं जिसका हति से पूर्ण सम्बन्ध है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।
(२६) गरूत्मान् :- इसका अर्थ होता है स्तुति से युक्त। निरुक्तके अनुसारगरुत्मान् गरणवान्” अर्थात् यह शब्द गृ निगरणे शब्दे च धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि वह स्तुति सम्पन्न होता है। गुर्वात्मा महात्मेति वा२ अर्थात् गुरू आत्मा वाला या महात्मा को गरुत्मान् कहा जाता है- गृ- गरूत् + मतुप् = गरुत्मान्। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके नुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार गरूत् + मतुप्=गरुत्मन्-गरुत्मान् बनाया जा सकता है। (२७) जातवेदस् :- यह अग्निका वाचक है। निरुक्तमें इसके कई निर्वचन प्राप्त होते हैं- १- जातानि वेद अर्थात् वह अग्नि सभी उत्पन्न वस्तुओं को जानती है।४८ इसके अनुसार इस शब्दमें ज्ञात + विद् ज्ञाने धातुका योग है। २- जातानि वैनं विदु:४७ अर्थात् जगत् की सभी उत्पन्न वस्तुएं इनको जानती हैं। इसके अनुसार इस शब्द जात + विद् विचारणे धातुका योग है । ३- जाते जाते विद्यते इति वा अर्थात् यह प्रत्येक उत्पन्न पदार्थों में विद्यमान है । ४९ इसके अनुसार इस शब्दमें जात + विद् सतायाम् धातुका योग है। ४- जातवित्तोवाजातधन : ४७ अर्थात् इससे धन उत्पन्न होता है।५° इसके अनुसार जातवेदस् शब्दमें जात+ विदलृ लाभे धातुका योग है। ५- जात विद्यो वा जात प्रज्ञान:४७ अर्थात् यह प्रकृतिसे ही ज्ञानवान् या प्रकाशवान है। इसके अनुसार इस शब्दमें जात+ विद् ज्ञाने धातुका योग है।
४०५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क