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________________ नासिकेवा८७ हनु तथा नासिका के लिए शिप्र शब्द प्रयुक्त हुआ है। हनु (जबड़े) अन्नग्रहण के लिए गति करते हैं तथा नासिका गन्ध ग्रहणके लिए गति करते हैं। सृप् गतौ से सुशिप्र शब्द में ध्वन्यात्मक औदासिन्य है।अर्थात्मक आधारइसका उपयुक्त है। (११२) करस्नौ :- यह वाहूका वाचक है। निरुक्तके अनुसार करस्नौ बाहू। कर्मणां प्रस्रातारौ।८७ करस्नौ द्विवचनान्त पद है जिसका अर्थ होता है भुजाएं। भुजाएं कार्य सम्पादन करने वाली होती हैं। अत: करस्नौ कहलाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें कर्म +स्ना धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक आधार शिथिल है। अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण संगत नहीं माना जायगा। (११३) हनू :- यह द्विवचनान्त शब्द दोनों जबड़ेका वाचक है। निरुक्तके अनुसार हनुर्हन्ते:८७ अर्थात् हनुः हन् , हिंसानत्यौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि ये खाद्य वस्तुओं को चबाते हैं या अन्नके लिए गति करते हैं। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार हन् धातुसे उः प्रत्यय कर हनुः शब्द बनाया जा सकता है।८८ (११४) नासिका :- यह नाकका वाचक है। निरुक्तके अनुसार नासिका नसते:८७ अर्थात् यह शब्द गत्यर्थक नस् धातुके योगससे निष्पन्न होता है क्योंकि गन्धग्रहण में इसमें गति होती है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार -नस्-ण्वुल् = नासिक नासिका शब्द बनाया जा सकता है। भारोपीय परिवारकी अंग्रेजी भाषा में नस् से निष्पन्न Nose नासा-नासिका (संस्कृत) किंचित् ध्वन्यन्तर के साथ प्राप्त होता है। (११५) धेना :- यह जिह्वा या वाणीका वाचक है। आचार्य दुर्गने इसका अर्थ जिह्वा या उपजिह्वा माना है- तयोहि अन्नं धीयते८९ अर्थात् दोनों में अन्न रखे जाते हैं या उनसे अन्न धारण किए जाते हैं। निरुक्तके अनुसार-धेना दधाते:८७ अर्थात् धेना शब्द धा धारण पोषणयो; धातुके योगसे निष्पन्न होता है। जिह्वा के पक्षमें अर्थ होगा वह अन्नको धारण करने वाली होती है। धा-धेना। वाणीके अर्थमें अभिधेय धारण करने वाली। निघण्टु के धेना शब्दकी व्याख्यामें देवराज यज्वा ने इसकी तीन व्याख्या प्रस्तुतकी है-१धा धातुसे-दधाना-धेना वाणी अर्थपरकार-धेट पाने धातुसे-धेना, वाणीको लोग स्वीकार करते हैं, ग्रहण करते हैं। ३. धिवि प्रीणने धातुसे धेना, सुप्रयुक्त वाणी ३६६ गुन्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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