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________________ प्रसन्न रखती है या लोगों की प्रसन्नताका कारण होती है । ९० यास्कका निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायेगा । व्याकरणके अनुसार धे धातुसे नन् प्रत्यय कर धेन-धेना शब्द बनाया जा सकता है।९१ - (११६) रंसु :- इसका अर्थ होता है- रमणीय स्थानों या पदार्थों में । निरुक्तके अनुसार - रंसु रमणीयेषु रमणात् अर्थात् यह शब्द रमु क्रीड़ायां धातुके योगसे निष्पन्न होता है। यह सप्तम्यन्त पद है इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार रम् + क्विप् + सुप् = रंसु शब्द बनाया जा सकता है। ( ११७) द्विबर्हा :- इसका अर्थ होता है दो स्थानों में बढ़ा हुआ । निरुक्तके अनुसार-द्वयोः स्थानयोः परिवृढ़ः मध्यमे च स्थान उत्तमे च।८७ अर्थात् उत्तम स्थान द्युलोक में तथा मध्यम स्थान अन्तरिक्ष लोकमें बढ़ा हुआ है। इसके अनुसार इस शब्द में द्वि+ वृह वृद्धौ धातुका योग है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार द्वि + वृह्+ असुन् प्रत्यय कर द्विबर्हा शब्द बनाया जा सकता है। (११८) अक्र :- इसका अर्थ होता है- दुर्ग, प्राकार, किला । निरुक्तके अनुसारअक्रः आक्रमणात्८७ अर्थात् आक्रमण करनेके कारण अक्र कहलाता है । युद्धमें शत्रु इस दुर्ग पर आक्रमण करते हैं। इसके अनुसार इस शब्द में आ + क्रम् धातुका योग है। आ अ + क्रम का क्र = अक्रः। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक महत्त्व से युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार अचु गतौ धातुसे रक् प्रत्यय कर अक्रः शब्द बनाया जा सकता है। - ( ११९) उराप्य :- इसका अर्थ होता है अल्पको अत्यधिक करने वाला। निरुक्तके अनुसार उराण: उरु कुर्वाणः ८७ अर्थात् उरु कुर्वाण ही उराण बन गया हैउरु+ कुर्वाण- उर्वाण-उराण। उरुका अर्थ होता है विस्तृत, कुर्वाण करने वाला। ध्वनि लोप आदि निर्वचन प्रक्रियाके अन्तर्गत मान्य हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसकी स्वीकृति है। तं त्वां याचामि में वर्ण लोप होकर तत्त्वायामि शब्द इसके अन्य उदाहरणों में द्रष्टव्य है।९२ भाषा विज्ञानके अनुसार यास्कका यह निर्वचन उपयुक्त है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारभी उपयुक्त है। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग उक्त अर्थ में प्राय नहीं देखा जाता। ३६७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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