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१३४. ग्लानुदिभ्यां डौ: उणा. २१६४, १३५. पिपर्ति पूरयति- नि.दु.वृ. ५१४, १३६. नि. ४।४, १३७. नि. ६।४, १३८ नि. ५।३, १३९. अम.को. १।१।४७, १४०. शमेर्वन्-उणा. ४९४, १४१. प्रथः कित्सम्प्रसारणंच-उणा. १।१३४, द्र.हला. पृ. ४४४, १४२. नि. ४२, १४३. अम. को. २१६५४, १४४. कु कुटिलम् अंचितं भवति नि.दु.वृ. ५४, १४५. ईषदंचितं भवति-नि.दु.वृ. ५।४, १४६. अम.को. २।८६४, १४७. द्रोणोऽस्त्रियामाढके स्यादाढकादि चतुष्टये। पुमान कृपीपतौ कृष्णंकाकेस्त्रीनीवृदन्तरे। स्त्रियां काष्टाम्दु वाहिन्यां गवादन्यामपीष्यते।। -मेदि. ४६।१७१८, १४८. कृवृनृसि. उणा. ३।१०, १४९. अम.को. १।१०।२६, १५०. निपानमाहावः अष्टा ३।३।७४,१५१. अष्टा ३।३।१९, १५२. एरच-अष्टा. ३।३।५६, १५३. कोकूयमाना शब्दं कुर्वाणा सा तालुनि शब्दान् नुदति तस्मात् कोकुवा नुदनात् काकुद शब्दं निरुक्तं स्यात् -नि.दु.वृ. ५।४, १५४. तत्र भव: अष्टा. ४।३।५३, १५५. अम.को. २।६।९१ (द्र. रामा.) अभि. चि.३।२४९-द्र. शेषरक् (रसाकाकुललना च), १५६. तया सर्वेआत्मनि अन्नं जुह्वति नि.दु.वृ. ५।४, १५७. तया आह्वयन्तिनि.दु.वृ. ५।४, १५९. शेवयह्वजिह्वाग्रीवाप्वमीवा:- उणा. १।१५२, १५९. तद्धि अन्येभ्य: अंगेभ्यः तीर्णतरं भवति-नि.दु.वृ.५।४, १६०.त्रो रश्च ल:- उणा. १।५. १६१. मृगय्वादयः-उणा. ११३७, १६२. नि. ९३, १६३. स्यन्देः सम्प्रसारणं घश्च-उणा. १।११, १६४. नेदीय इत्सृण्य: पक्वेमेयात्-ऋ. १०/१०१।३, १६५. सृवृषिभ्यां कित्-उणा. ४।४९.
(ग) निरुक्तके षष्ठ अध्याय के निर्वचनोंका मूल्यांकन
निरुक्तका षष्ठ अध्याय निघण्टुके नैगम काण्डके तृतीय खण्डकी व्याख्या है। नैगम काण्डके तृतीय खण्डमें स्वतंत्र पदोंका संग्रह है जिसकी कुल संख्या १३३ है। इन सारे शब्दोंके निर्वचन निरुक्तके इस अध्यायमें प्राप्त होते हैं नैगम काण्डके ये सारे शब्द अनेकार्थक तथा क्लिष्ट संस्कार वाले हैं। अनेकार्थक होने के कारण इन शब्दोंकी व्याख्यामें एक से अधिक निर्वचन देनेकी आवश्यकता पड़ी है।
निरुक्तके षष्ठं अध्यायमें यास्कने कुल २०६ पदोंका निर्वचन किया है। जिसमें निघण्टुके नैगम काण्डके तृतीय खण्डमें पठित एक. सौ सैंतीस पदोंके निर्वचन भी सम्मिलित हैं। शेष ७३पद प्रसंगत: आये हैं जिनका वैदिक संस्कृत की अपेक्षा लौकिक
३३३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क