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________________ संस्कृत में अधिक महत्त्व है। कुछ निर्वचनों को पूर्व में स्पष्ट किया गया है या बादमें व्याख्याकी जायगी, कह कर यास्क काम चला लेते हैं। अमत्रः एवं दूतः की व्याख्या पूर्व में भी की जा चुकी है, तथा ऋदूपेकी व्याख्या बादमें की जायगी, के द्वारा यास्क स्पष्ट करते हैं। इस अध्यायमें यास्क द्वारा प्रस्तुत २०६ शब्दोंके निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण हैं। यद्यपि भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे सारे निर्वचन सर्वथा उपयुक्त नहीं हैं। कुछ निर्वचन ध्वन्यात्मक शैथिल्यसे युक्त हैं तथा कुछ भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे सर्वथा अस्पष्ट। भाषा विज्ञानकी दृष्टि से उपयुक्त निर्वचनों में आशुशुक्षणिः, शुक्, शुचिः, आशा , काशिः, मुष्टि, रोदसी, रोध, लोष्टः, कुणारूम् , अलातृण: बल:, व्रजः, पुरुहूतः, तपुषि, हेति:, विसुहः वीरुधा, पुलुकामः, कपना:, रूजाना:, जूर्णि, ओमना, उपलप्रक्षिणी, कारूः, नना , उपसि, प्रकलवित्, अभ्यर्द्धयज्वा, ईक्षे, क्षोणस्य , पाथः, सवीमनि , सप्रथा, विदथानि, श्रायन्तः, ओजः, आशी:, अजीगः, शशमानः, कृपा, जामाता, स्यालः, लाजा, स्यम् , सोमानम् , औशिजः, उशिक्, अनवायम् , अघम् , तपुः, चरू:, पिशुन:, प्रसितिः, तृष्वी, तपिष्ठैः, अमीवा , क्रिमि:, दुरितम्, अप्वा, श्रुष्टी, नासत्यौ, पुरन्धिः , रूषत्, आप्यम्, सुदत्रः, सुविदत्र, आनुषक्, तुर्वणिः, गिर्वणा, असूते, सूते, अम्यक्, अग्रिया, पचता, शुरुधः, अमिनः, जज्झती:, अप्रतिष्कुतः, सृप्रः, हनू, नासिका, धेना, रंसु, द्विवर्हाः, अक्रः, उराणः, स्तिया, स्तिपाः, जवारू, जरूयम् , स्कन्धः, तुअः, वर्हणा, ततनुष्टिः, घंस, ऊघः, कियैधाः, भृमिः, तुरीयम्, रास्पिनः, ऋजतिः, ऋजुनीति, हिनोत, शकटम् , दिविष्टिषु, कुरूंगः, क्रूरम् , जिन्वति, ऋचीसमः, अनर्शरातिम्, अश्लीलम् , अनर्वा , मन्द्रजिह्व, असामि, सामि, गल्दया, लागंलः, लांगूलम्, मत्स्याः , जालम् , अंहुरः, वाताप्यम् वायः, आधवः, सदान्चे, शिरिम्बिठः, विकटः, मगन्दः, पण्डगः, शाखा , वुन्दः, ऋदूपे, उल्वम् , और गणः। पूर्ण ध्वन्यात्मकतासे रहित निर्वचनोंमें आशा, मुष्ठि, वाणी, मूलम् , अग्रम् , सललूकम् , भाऋजीकः, जूर्णिः, कृपा, स्यालः, सूर्पम् , क्रव्यम् , किमीदिने, अमवान्, पाजः, रिशादसः, जारयायि, सुशिप्रः, कुलिशः, इलीविशः, विष्पितः, कुलम् जल्हवः, लिवुजा, ब्रतति, करूलती, आणि और ऋवीसम् है। यास्कके कत्पयम्, अस्कृधोयुः निश्रम्मा, विजामाता , अणुः और स्थर्यति निर्वचनकी दृष्टिसे अस्पष्ट हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे अपूर्ण निर्वचनोंमें कूलम् , नक्षद्दाभम् , ३३४: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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