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१४] :: ::
:: :: श्री संथारापरिज्ञा पयन्ना
आसी कुलाणनयरे राया नामेण वेसमणदासो । तस्स अमचो रिट्ठो मिच्छद्दिट्ठी पडिनिविट्ठो ॥ ८१ ॥
तत्थ्यमुणिवरवस होगणिपिडगधरोतहासिआयरिओ नामेण उसहसेणो सुअसायरपारगो धीरो ॥ ८२ ॥
तस्सासी अ गणहरो नाणासत्थत्थग हिअपेआलो । नामेण सीह सेणो वार्यमि पराजिओ रुट्ठो ॥ ८३ ॥
अह सो निराणुकंपो अरिंग दाऊण सुविहिअपसंते । सो तह वि उज्झमाणो परिवन्नो उत्तमं अहं ॥८४॥
कुरुदत्तोऽवि कुमारो सिंबलिफालिव्व अग्गिणा दड्डी । सो तह वि उज्झमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ८५ ॥
आसी चिलाइ तो मुइंगुलिआहिं चालणिव्व कओ ! सो तहवि खज्झमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ८६ ॥