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चतुर्थे कृदध्याये षष्ठः क्त्वादिपादः
६५३ [क० त०]
१०। अथ ‘पक्वः' इत्यत्रान्तरङ्गत्वाद् धुटि कृतस्य ककारस्य निमित्ताभावे नैमित्तिकाभावः कथन स्यात्। वकारे कृते धुटोऽभावादिति चेत्, न। 'असिद्धं बहिरङ्गमन्तरङ्गे' (का०परि० ४३) इति न्यायात्।।१३९६।
[समीक्षा]
'क्षामः, शुष्कः, पक्व:' शब्दों की सिद्धि दोनों ही आचार्यों ने तकार को 'म-क-व' आदेशों द्वारा की है। एतदर्थ पाणिनि ने पृथक् पृथक् तीन सूत्र किये हैं- "शुष: क:, पचो वः, क्षायो म:' (अ०८।२।५१-५३)। पृथक् ३ सूत्रों से प्रयुक्त गौरव को छोड़कर अन्य प्रकार की तो उभयत्र समानता है।
[रूपसिद्धि]
१-६. क्षामः, क्षामवान्। क्षे+क्त, क्तवन्तु+सि। शुष्कः शुष्कवान्। शुष+क्त+ क्तवन्तु+सि। पक्वः, पक्ववान्। पच+क्त, क्तवन्तु+सि। 'क्षै-शुष्-पच्' धातुओं से क्तक्तवन्तु प्रत्यय, क्रमश: निष्ठातकार को 'म-क-व' आदेश तथा विभक्तिकार्य।।१३९६।।
१३९७. वा प्रस्त्यो मः [४।६।११२] [सूत्रार्थ
'प्र' उपसर्गपूर्वक 'स्त्यै शब्दसंघातयोः' (१।२५७) धातु से उत्तरवर्ती निष्ठातकार को विकल्प से मकारादेश होता है।।१३९७।
[दु०वृ०]
प्रपूर्वस्य स्त्यायतेर्निष्ठातकारस्य मो भवति वा। प्रस्तीम:, प्रस्तीमवान्। प्रस्तीत:, प्रस्तीतवान्। मत्वान्नित्यं सम्प्रसारणमेवेति।।१३९७।
[क० त०]
वा०। अथ 'प्रस्तीतः, प्रस्तीतवान्' इत्यत्र "आतोऽन्तस्थायुक्तात्" (४।६।१०३) इति निष्ठायां नत्वं कथन स्यादित्याह- नत्वान्नित्यं सम्प्रसारणमिति।।१३९७।
[समीक्षा
'प्रस्तीम:, 'प्रस्तीत:' इत्यादि शब्दों की सिद्धि के लिये दोनों ही आचार्यों ने निष्ठातकार को विकल्प से मकारादेश किया है। पाणिनि का सूत्र है"प्रस्त्योऽन्यतरस्याम्' (अ०८।२।५४)। अत: उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि
१-२. प्रस्तीमः, प्रस्तीत:। प्र+स्त्यैक्त+सि। प्रस्तीमवान्, प्रस्तीतवान्। प्रपूर्वक 'स्त्यै' धातु से क्त-क्तवन्तु प्रत्यय, धातुगत 'या' को सम्प्रसारण, वैकल्पिक मकारादेश तथा विभक्तिकार्य।।१३९७।